पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/४४

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कोई चिन्ता नहीं, भैरोंसिंह हमारे साथ हैं। आप बाग के इस दर्जे को तोड़कर दूसरी जगह पहुँचिए और यह काम रात-भर के अन्दर होना चाहिए।

––"शिवरामे गोपाल मेरावशि शुलेख।"

चिट्ठी पढ़कर आनन्दसिंह को भी बड़ा अफसोस हुआ और अपने किए पर पछताने लगे। सच तो यों है कि दोनों ही भाइयों को इस बात का अफसोस हुआ कि किशोरी, कामिनी इत्यादि को अपने पास आ जाने पर भी देखे और होश में लाये बिना छोड़कर इधर चले आये और व्यर्थ की झंझट में पड़े, क्योंकि दोनों कुमार किशोरी और कामिनी की मुलाकात से बढ़कर दुनिया में किसी चीज को पसन्द नहीं करते थे।

दोनों कुमार जल्दी-जल्दी उस कमरे के बाहर हुए और उस खिड़की में पहुँचे जिसमें कमन्द लगा हुआ छोड़ आये थे मगर आश्चर्य और अफसोस की बात थी कि अब उन्होंने उस कमन्द को खिड़की में लगा हुआ न पाया जिसके सहारे वे नीचे उतर जाते, शायद किसी नीचे वाले ने उस कमन्द को हटा लिया था।


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राजा गोपालसिंह ने जब रामदीन को चिट्ठी और अँगूठी देकर जमानिया भेजा था तो यद्यपि चिट्ठी में लिख दिया था कि परसों रविवार को शाम तक हम लोग वहाँ (पिपलिया घाटी) पहुँच जाएँगे, मगर रामदीन को समझा दिया था कि रविवार को पिपलिया घाटी पहुँचना हमने यों ही लिख दिया है, वास्तव में हम वहाँ सोमवार को पहुँचेंगे अस्तु तुम भी सोमवार को पिपलिया घाटी पहुँचना, जिसमें ज्यादा देर तक हमारे आदमियों को वहाँ ठहर कर तकलीफ न उठानी पड़े, और दो सौ सवारों की जगह केवल बीस सवार लाना। यह वात असली रामदीन को तो मालूम थी और वह मारा न जाता तो बेशक रथ और सवारों को लेकर राजा साहब की आज्ञानुसार सोमवार को ही पिपलिया घाटी पहुँचता, मगर नकली रामदीन अर्थात् लीला तो उन्हीं बातों को जान सकती थी जो चिट्ठी में लिखी हुई थीं। अस्तु वह रविवार ही को रथ और दो सौ फौज लेकर पिपलिया घाटी जा पहुँची और जब सोमवार को राजा साहब वहाँ पहुँचे, तो बोली, "आश्चर्य है कि आपके आने में पूरे आठ पहर की देर हुई!"

यह सुनते ही राजा साहब समझ गये कि यह असली रामदीन नहीं है, उसी समय से उन्होंने अपनी कार्रवाई का ढंग बदल दिया और लीला तथा मायारानी का सब बन्दोबस्त मिट्टी में मिल गया। वे उसी समय दो-चार बातें करके पीछे लौट गए और दूसरे दिन औरतों को अपने साथ न लाकर केवल भैरोंसिंह और इन्द्रदेव को साथ लिए हुए पिपलिया घाटी में आए।

इस जगह यह भी लिख देना उचित जान पड़ता है कि दूसरे दिन पिपलिया घाटी में पहुँच कर लीला के लाए हुए सवारों के साथ रथ पर चढ़ कर जमानिया पहुँचने वाले