सैर करा के अपने सिर से एक भारी बोझ उतार दूँ।
इन्द्रजीतसिंह––क्या इधर दो-तीन दिन के बीच में कोई और भी इस बाग में आया है?
दारोगा––जी हाँ, दो मर्द और कई आरतें आई हैं।
इन्द्रजीतसिंह––क्या उन लोगों के नाम बता सकते हो?
दारोगा––नानक और भैरोंसिंह के सिवाय मैं और किसी का नाम नहीं जानता (कुछ सोचकर) हाँ, एक औरत का भी नाम जानता हूँ, शायद उसका नाम कमलिनी है, क्योंकि वह दो-एक दफे इसी नाम से पुकारी गई थी, बड़ी ही धूर्त और चालाक है, अपनी अक्ल के सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं, बिना धोखा खाये नहीं रह सकती।
इन्द्रजीतसिंह––क्या यह बता सकते हो कि वे सब इस समय कहाँ हैं और उनसे मुलाकात क्योंकर हो सकती है?
दारोगा––जी मुझे उन लोगों का पता मालूम नहीं, क्योंकि कमलिनी ने उन सभी को मेरी बात मानने न दी और अपनी इच्छानुसार उन सभी को लिए हुए चारों तरफ घूमती रहीं, इसी से मुझे रंज हुआ और मैंने उनकी खबरगीरी छोड़ दी।
इन्द्रजीतसिंह––अगर तुम यहाँ के दारोगा हो, तो खबरदारी न रखने पर भी यह तो जरूर जानते ही होगे कि वे सब कहाँ हैं!
दारोगा––मुझे यहाँ का दारोगा समझने और न समझने का तो आपको अख्तियार है, मगर मैं यह जरूर कहूँगा कि मुझे उन सभी का पता नहीं मालूम है।
आनन्दसिंह––(हँस कर) यही हाल है तो यहाँ की हिफाजत क्या करते हो?
दारोगा––इसका हाल तो तभी मालूम होगा जब आप मेरे साथ चलकर यहाँ की सैर करेंगे।
आनन्दसिंह––अच्छा, यह बताओ कि अभी हमारे देखते-ही-देखते जो लोग नानक को ले गए, वे कौन थे?
दारोगा––वे सब मेरे ही नौकर थे। वह झूठा और शैतान है, तथा आपको नुकसान पहुँचाने की नीयत से धोखा देकर यहाँ घुस आया है, सिर्फ इसीलिए मैंने उसे गिरफ्तार करने का हुक्म दिया।
आनन्दसिंह––तुम्हारे आदमी लोग कहाँ रहते हैं? यहाँ तो मैं तुमको अकेला ही देखता हूँ।
दारोगा––यह कमरा तो मेरा एकान्त स्थान है, जब पढ़ने या किसी विषय पर गौर करने की जरूरत पड़ती है तब मैं इस कमरे में आकर बैठता या लेटता हूँ। मगर यहाँ खड़े-खड़े बातें करने में तो आपको तकलीफ होगी। आप मेरे स्थान पर चलें, तो उत्तम हो, या बाग ही में चलिए जहाँ और भी कई...
इन्द्रजीतसिंह––खैर, यह सब तो होता रहेगा, पहले हम लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि तुम हमारे दोस्त हो, दुश्मन नहीं और तुम्हारी ग्रह सूरत असली है बनावटी नहीं। इसके बाद मैं तुससे दिल खोल कर बातें कर सकूँगा।
दारोगा––इस बात का पता तो आपको मेरी कार्रवाई से ही लग सकेगा, मेरे