पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/८४

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कहने का आपको ऐतबार कब होगा, मगर इस बात को खूब समझ...

दारोगा की बात पूरी न होने पाई थी, कि एक तरफ से आवाज आई, "अजी, तुम्हें कुछ खाने-पीने की भी सुध है या यों ही बकवाद किया करोगे!"

दोनों कुमार ताज्जुब के साथ उस तरफ देखने लगे जिधर से आवाज आई थी। उसी समय एक बुढ़िया उसी तरफ से कमरे के अन्दर आती दिखाई पड़ी और वह दारोगा के पास आकर फिर बोली, "मैं बड़ी ही बदकिस्मत थी जो तुम्हारे साथ व्याही गई! मैंने जो कहा, तुमने कुछ सुना या नहीं?"

दारोगा––(क्रोध से) आ गई शैतान की नानी!

दोनों कुमारों ने देखते ही उस बुढ़िया को पहचान लिया कि यह वही बुढ़िया है, जो भैरोंसिंह की जोरू उस समय बनी हुई थी, जब भैरोंसिंह पागल हुआ इसी बाग में हम लोगों को दिखाई दिया था।

इन्द्रजीतसिंह ने ताज्जुब और दिल्लगी की निगाह से उस बुढ़िया की तरफ देखा और कहा, "अभी कल की बात है कि तू भैरोंसिंह पागल की जोरू बनी हुई थी और आज इस दारोगा को अपना मालिक बता रही है।"


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कुँअर इन्द्रजीतसिंह की बात सुनकर वह बुढ़िया चमक उठी और नाक-भौं चढ़ा कर बोली, "बुड्ढी औरतों से दिल्लगी करते तुम्हें शर्म नहीं मालूम होती।"

इन्द्रजीतसिंह––क्या मैं झूठ कहता हूँ?

बुढ़िया––इससे बढ़कर झूठ और क्या हो सकता है? लोग किसी के पीछे झूठ बोलते हैं, मगर आप मुँह पर झूठ बोल कर अपने को सच्चा बनाने का उद्योग करते हैं! भला इस तिलिस्म में दूसरा आ ही कौन सकता है? और वह भैरोंसिंह कौन है जिसका नाम आपने लिया?

इन्द्रजीतसिंह––बस-बस, मालूम हो गया। मैं अपने को तुम्हारी जबान से...

बुड्ढा––(इन्द्रजीतसिंह को रोक कर) अजी आप किससे बातें कर रहे हैं? यह तो पागल है। इसकी बातों पर ध्यान देना आप ऐसे बुद्धिमानों का काम नहीं है। (बुढ़िया से) तुझे यहाँ किसने बुलाया जो चली आई? तेरे ही दुःख से तो भाग कर मैं यहाँ एकांत में आ बैठा हूँ, मगर तू ऐसी शैतान की नानी है कि यहाँ भी आए बिना नहीं रहती। सवेरा हुआ नहीं और खाने की रट लग गई!

बुड्ढी––अजी तो क्या तुम खाओ, पीओगे नहीं?

वुड्ढा––जब मेरी इच्छा होगी, तब खा लूँगा, तुम्हें इससे मतलब? (दोनों कुमारों से) आप इस कम्बख्त का खयाल छोड़िए और मेरे साथ चले आइए। मैं आपको ऐसी जगह ले चलता हूँ, जहाँ इसकी आत्मा भी न जा सके। उसी जगह हम लोग बातचीत

च॰ स॰-5-5