पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/८६

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बुड्ढा––हाँ, मैं खुशी से आपको रास्ता बता सकता हूँ, मगर स्वयं आपके साथ वहाँ तक नहीं जा सकता, इसके अतिरिक्त यह कह देना भी उचित जान पड़ता है कि यहाँ से उस बाग में जाने का रास्ता बहुत पेचीदा और खराब है, इसलिए वहाँ जाने में कम-से कम एक पहर तो जरूर लगेगा। इससे यही बेहतर होगा कि यदि आप उस बाग में या उन सभी के पास जाना चाहते हैं, तो कमन्द लगाकर इस खिड़की की राह से नीचे उतर जायें। ऐसा आप करना चाहें तो आज्ञा दें मैं एक कमन्द आपको ला दूँ।

इन्द्रजीतसिंह––हाँ यह बात मुझे पसन्द है, यदि एक कमन्द ला दो, तो हम दोनों भाई उसी के सहारे नीचे उतर जायें।

वह बुड्ढा दोनों कुमारों को उसी तरह उसी जगह छोड़ कर कहीं चला गया और थोड़ी ही देर में बहुत बड़ी कमन्द हाथ में लिए हुए आकर बोला, "लीजिए, यह कमन्द हाजिर है।"

इन्द्रजीतसिंह––(कमन्द लेकर) अच्छा, तो अब हम दोनों इस कमन्द के सहारे उस बाग में उतर जाते हैं।

बुड्ढा––जाइये, मगर यह बताते जाइए कि आप लोग वहाँ से लौटकर कब आवेंगे और मुझे आपको यहाँ की सैर कराने का मौका कब मिलेगा?

इन्द्रजीतसिंह––सो तो मैं ठीक नहीं कह सकता, मगर तुम यह बता दो कि अगर हम लौटें तो यहाँ किस राह से आवें!

बुड्ढा––इसी कमन्द के जरिये इसी राह से आ जाइयेगा, मैं यह खिड़की आपके लिए खुली छोड़ दूँगा।

आनन्दसिंह––अच्छा यह बताओ कि भैरोंसिंह की भी कुछ खबर है?

बुड्ढा––कुछ नहीं।

इसके बाद दोनों कुमारों ने उस बुड्ढे से कुछ भी न पूछा और खिड़की खोलने के बाद कमन्द लगाकर उसी के सहारे दोनों नीचे उतर गये।

दोनों कुमारों ने यद्यपि उन औरतों को ऊपर से बखूबी देख लिया था, क्योंकि वह बहुत दूर नहीं पड़ती थीं, मगर इस बात का गुमान न हुआ कि उन औरतों ने भी उन्हें उस समय या कमन्द के सहारे नीचे उतरते समय देखा या नहीं।

जब दोनों कुमार नीचे उतर गये तो कमन्द को भी खींच कर साथ ले लिया और टहलते हुए उस तरफ रवाना हुए जिधर चश्मे के किनारे बैठी हुई वे औरतें कुमार ने देखी थीं। थोड़ी देर में कुमार उस चश्मे के पास जा पहुँचे और उन औरतों को उसी तरह बैठे हुए पाया। कुमार चश्मे के इस पार थे और वे सब औरतें जो गिनती में सात थीं, चश्मे के उस पार सब्ज घास के ऊपर बैठी हुई थीं।

किसी गैर को अपनी तरफ आते देख वे सब औरतें चौकन्नी होकर उठ खड़ी हुई और बड़े गौर के साथ मगर क्रोध-भरी निगाहों से कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ देखने लगीं।

जिस जगह वे औरतें बैठी थीं, उससे थोड़ी ही दूर पर दक्खिन तरफ बाग की दीवार के साथ ही एक छोटा-सा मकान बना हुआ था जो पेड़ों की आड़ में होने के कारण