पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१२६

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जमुनी लोटे में जल रक्खा हुआ था। उसी चौकी पर से एक रूमाल उठा लिया और उसे गीला करके अपना मुंह अच्छी तरह पोंछने अथवा धोने के बाद रूमाल खिड़की के बाहर फेंक दिया । और तब उस जगह चली आई जहाँ आनन्दसिंह गहरी नींद में सो रहे थे।

कामिनी ने आँचल के कपड़े से एक मामूली बत्ती बनाई और नाक में डाल कर उसके जरिये से दो-तीन छींके मारी, जिनकी आवाज से आनन्दसिंह की आँख खुल गई और उन्होंने अपने पास कामिनी को बैठे हुए देखकर ताज्जुब से कहा, "हैं, तुम बैठी क्यों हो ? खैरियत तो है!"

कामिनी--जी हाँ, मेरी तबीयत तो अच्छी है मगर तरबुद और सोच के मारे नींद नहीं आ रही है । बहुत देर से जाग रही हूँ।

आनन्दसिंह--(उठकर) इस समय भला कौन से तरढुद और सोच ने तुम्हें आ घेरा?

कामिनी--क्या कहूँ, कहते हुए भी शर्म मालूम पड़ती है?

अनान्दसिंह--आखिर कुछ कहो तो सही, शर्म कहाँ तक करोगी?

कामिनी--खैर मैं कहती हूँ, मगर आप बुरा तो न मानेंगे?

आनन्दसिंह--मैं कुछ भी बुरा न मानूंगा, तुम्हें जो कुछ कहना है कहो।

कामिनी-–बात केवल इतनी ही है कि मैं छोटे कुमार से एक दिल्लगी कर बैठी हूँ मगर आज उस दिल्लगी का भेद जरूर खुल गया होगा, इसलिए सोच रही हूँ कि अब क्या करूं? इस समय कामिनी बहिन से भी मुलाकात नहीं हो सकती, जो उनको कुछ समझा-बुझा देती।

आनन्दसिंह--(ताज्जुब में आकर) तुमने कोई भयानक सपना तो नहीं देखा जिसका असर अभी तक तुम्हारे दिमाग में घुसा हुआ है ? यह मामला क्या है ? तुम कैसी बातें कर रही हो!

कामिनी--नहीं-नहीं, कोई विशेष बात नहीं है और मैंने कोई भयानक सपना भी नहीं देखा, बात केवल इतनी ही है कि मैं हँसी-हँसी में छोटे कुमार से कह चुकी हूँ कि 'मेरी शादी अभी तक नहीं हुई है और मैं प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ कि ब्याह कदापि न करूँगी।' अब आज ताज्जुब नहीं कि कामिनी बहिन ने मेरा सच्चा भेद खोल दिया हो और कह दिया हो कि 'लाड़िली की शादी तो कमलिनी की शादी के साथ-ही-साथ अर्थात् दोनों की एक ही दिन हो चुकी है और आज उसकी भी सोहागरात है।' अगर ऐसा हुआ तो मुझे बड़ी शर्म...

आनन्दसिंह--(ताज्जुब और घबराहट से) तुम तो पागलों की सी बातें कर रही हो । आखिर तुमने अपने को और मुझको समझा ही क्या है ? जरा पूंघट हटा कर बातें करो । तुम्हारा मुँह तो दिखाई ही नहीं देता!

कामिनी--नहीं, मुझे इसी तरह बैठे रहने दीजिए । मगर आपने क्या कहा सो मैं कुछ भी नहीं समझी, इसमें पागलपने की भला कौन सी बात है?

आनन्दसिंह--तुमने जरूर कोई सपना देखा है जिसका असर अभी तक तुम्हारे