रक्खा हुआ था और अपना चेहरा धोने लगे। पानी पड़ते ही हाथ पर रंग उतर आया जिस पर निगाह पड़ते ही लाड़िली चौंकी और रंज के साथ बोली, "बेशक चेहरा रंगा हुआ है! हाय बड़ा ही गजब हो गया! मैं बेमौत मारी गई! मेरा धर्म नष्ट हुआ! अब मैं अपने पति के सामने किस मुँह से जाऊँगी और अपनी हमजोलियों की बातों का क्या जवाब दूँगी! औरतों के लिए यह बड़े ही शर्म की बात है, नहीं-नहीं, बल्कि औरतों के लिए यह घोर पातक है कि पराये मर्द का संग करें। सच तो यह है कि पराये मर्द का शरीर छू जाने से भी प्रायश्चित्त लगता है, और बात का तो कहना ही क्या है! हाय, मैं बर्बाद हो गई और कहीं की भी न रही। इसमें कोई शक नहीं कि आपने जानबूझकर मुझे मिट्टी में मिला दिया!
आनन्दसिंह––(अच्छी तरह चेहरा धोने के बाद रूमाल से मुँह पोंछकर) क्या कहा? क्या जानबूझकर मैंने तुम्हारा धर्म नष्ट किया?
लाड़िली––वेशक ऐसा ही है, मैं इस बात की दुहाई दूँगी और लोगों से इन्साफ चाहूँगी।
आनन्दसिंह––क्या मेरा धर्म नष्ट नहीं हुआ?
लाड़िली––मर्दो के धर्म का क्या कहना है और उसका बिगड़ना ही क्या, जो दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह ब्याह से भी ज्यादा कर सकते हैं! बर्बादी तो औरतों के लिए है। इसमें कोई शक नहीं कि आपने जान-बूझकर मेरा धर्म नष्ट किया। जब आप छोटे कुमार ही थे तो आपको मेरे पास से उठ जाना चाहिए था या मेरे पास बैठना ही मुनासिब न था।
आनन्दसिंह––मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि मैंने तुम्हारी सूरत घूँघट के सबब से अच्छी तरह नहीं देखी, एक दफे ऐंचातानी में निगाह पड़ भी गयी थी तो तुम्हें कामिनी ही समझा था, और इसके लिए भी मैं कसम खाता हूँ कि मैंने तुम्हें धोखा देने के लिए जान-बूझकर अपनी सूरत नहीं रंगी है बल्कि मुझे इस बात की खबर भी नहीं कि मेरी सूरत किसने रंगी या क्या हुआ।
लाड़िली––अगर आपका यह कहना ठीक है तो समझ लीजिये कि और भी गजब हो गया! मेरे साथ-ही-साथ कामिनी भी बर्बाद हो गई होगी। जिस धर्मात्मा ने धोखा देकर रा संग आपके साथ करा दिया है, उसने कामिनी को भी, जो आपके साथ ब्याही गई है, जरूर धोखा देकर मेरे पति के पलंग पर सुला दिया होगा!
यह एक ऐसी बात थी जिसे सुनते ही आनन्दसिंह का रंग बदल गया। रंज और अफसोस की जगह क्रोध ने अपना दखल जमा लिया और कुछ सुस्त तथा ठंडी रगों में बेमौके हरारत पैदा हो गई जिससे बदन काँपने लगा और उन्होंने लाल आँखें करके लाड़िली की तरफ देख के कहा––क्या कहा? तुम्हारे पति के पलंग पर कामिनी! यह किसकी मजाल है कि···
लाडिली––ठहरिये-ठहरिये, आप गुस्से में न आ जाइये। जिस तरह आप अपनी और कमलिनी की इज्जत समझते हैं, उसी तरह मेरी और मेरे पति की इज्जत पर भी आपको ध्यान देना चाहिए। मेरी बर्बादी पर तो आपको गुस्सा न आया और कमलिनी