पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
130
 

का भी मेरा ही सा हाल सुनकर आप जोश में आकर उछल पड़े, अपने आपे से बाहर हो गये और आपको बदला लेने की धुन सवार हो गई! सच है, दुनिया में किसी बिरले ही महात्मा को हमदर्दी और इन्साफ का ध्यान रहता है, दूसरे पर जो कुछ बीती है उसका अन्दाजा किसी को तब तक नहीं लग सकता, जब तक उस पर भी वैसी ही न बीते। जिसने कभी एक उपवास भी नहीं किया है, वह अकाल के मारे भूखे गरीबों पर उचित और सच्ची हमदर्दी नहीं कर सकता, यों उनके उपकार के लिए भले ही बहुत-कुछ जोश दिखाये और कुछ कर भी बैठे। ताज्जुब नहीं कि हमारे बुजुर्ग और बड़े लोग इसी खयाल से बहुत से व्रत चला गये और इससे उनका मतलब यह भी हो कि स्वयं भूखे रहकर देख लो, तब भूखों की कदर कर सकोगे। दूसरे के गले पर छुरी चला देना कोई बड़ी बात नहीं है, मगर अपने गले पर सुई से भी निशान नहीं किया जाता। जो दूसरों की बहू-बेटियों को झाँका करते हैं, वे अपनी बहू-बेटियों का झाँका जाना सहन नहीं कर सकते। बस, इसी से समझ लीजिये कि मेरी बर्बादी पर आपको अगर कुछ खयाल हुआ तो केवल इतना ही कि बस, कसम खाकर अफसोस करने लगे और सोचने लगे कि मेरे दिल से किसी तरह इस बात का रंज निकल जाय, मगर कामिनी का भी मेरे ही ऐसा हाल सुनकर म्यान के बाहर हो गये! क्या यही इन्साफ है और यही हमदर्दी है! इसी दिल को लेकर आप राजा बनेंगे और राज-काज करेंगे!

लाड़िली की जोश-भरी बातें सुनकर आनन्दसिंह सहम गये और शर्म ने उनकी गर्दन झुका दी। वह सोचने लगे कि क्या करूँ और इसकी बातों का क्या जवाब दूँ! इसी समय कमरे का दरवाजा खुला (जो शायद धोखे में खुला रह गया होगा) और इन्द्रदेव की लड़की इन्दिरा को साथ लिए हुए कामिनी आती दिखाई पड़ी।

लाड़िली––लीजिये, कामिनी बहिन भी आ पहुँचीं! कुछ ताज्जुब नहीं कि ये भी अपना हाल कहने के लिए आई हों। (कामिनी से) लो बहिन, आज हम तुम्हारे बराबर हो गये!

कामिनी––बराबर नहीं, बल्कि बढ़ के!


2

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। महल के अन्दर एक सजे हुए कमरे में एक तरफ रानी चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा बैठी हुई हैं और उनसे थोड़ी ही दूर पर राजा वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह और भैरोंसिंह बैठे आपस में कुछ बातचीत कर रहे हैं।

चन्द्रकान्ता––(वीरेन्द्रसिंह से) सच्चा-सच्चा हाल मालूम होना तो दूर रहा मुझे इस बात का किसी तरह कुछ गुमान भी न गुआ। इस समय मैं दुल्हिनों की सोहागरात का इन्तजाम देख-सुनकर यहाँ आई और दिन भर की थकावट से सुस्त होकर पड़ रही, जी में आया कि घंटे दो घंटे सो रहूँ, मगर इसी बीच में चपला बहिन आ पहुँची और बोली, "लो बहिन, मैं तुम्हें एक अनूठा हाल सुनाती हूँ जिसकी अब तक हम लोगों को