पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६०

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हूँ मगर इतना मैं जरूर कहूँगा कि भूतनाथ के मुकदमे में तेजसिंहजी ने बहुत बड़ी गलती की गलती तो सभी ने की मगर तेजसिंहजी को ऐयारों का सरताज मानकर मैं सबके पहले इन्हीं का नाम लूँगा। इन्होंने जब लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाड़िली इत्यादि के सामने वह कागज का मुट्ठा खोला था और चिट्ठियों को पढ़कर भूतनाथ पर इलजाम लगाया था कि "बेशक ये चिट्ठियाँ भूतनाथ के हाथ की लिखी हुई हैं।" तब इतना क्यों नहीं सोचा कि भूतनाथ की चिट्ठियों के जवाब में हेलासिंह ने जो चिट्ठियाँ भेजी हैं, वे भी तो भूतनाथ ही के हाथों की लिखी हुई मालूम पड़ती हैं, तो क्या अपनी चिट्ठियों का जवाब भी भूतनाथ अपने ही हाथ से लिखा करता था?"

यहाँ तक कहकर भरतसिंह चुप हो रहे और तेजसिंह की तरफ देखने लगे। तेजसिंह ने कहा, "आपका कहना बहुत ही ठीक है, बेशक उस समय मुझसे यह बड़ी भूल हो गई। उनमें की एक ही चिट्ठी पढ़कर क्रोध के मारे हम लोग ऐसे पागल हो गए कि इस बात पर कुछ भी ध्यान न दे सके। बहुत दिनों के बाद जब देवीसिंह ने यह बात सुझाई, तब हम लोगों को बहुत अफसोस ही हुआ और तब से हम लोगों का खयाल भी बदल गया।"

भरतसिंह ने कहा, "तेजसिंहजी, इस दुनिया में बड़े-बड़े चालाकों और होशियारों से यहाँ तक कि स्वयं विधाता ही से भूल हो गई है तो फिर हम लोगों की क्या बात है? मगर मजा तो यह कि बड़ों की भूल कहने-सुनने में नहीं आती, इसीलिए आपकी भूल पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। किसी कवि ने ठीक ही कहा है––

को कहि सके बड़ेन सों लखे बड़े की भूल।
दीन्हें दई गुलाब के, इन डारन ये फूल॥

अतः अब मैं पुनः अपनी कहानी शुरू करता हूँ।

इसके बाद भरतसिंह ने फिर इस तरह कहना शुरू किया––

भरतसिंह––मैंने हरदीन से कहा कि अगर यह बात है तो गदाधरसिंह से मुलाकात करनी चाहिए, मगर वह मुझसे अपने भेद की बातें क्यों कहने लगा? इसके अतिरिक्त वह यहाँ रहता भी नहीं है कभी-कभी आ जाता है। साथ ही इसके यह जानना भी कठिन है कि वह कब आया और कब चला गया।

हरदीन––ठीक है, मगर मैं आपसे उनकी मुलाकात करा सकता हूँ। आशा है कि वे मेरी बात मान लेंगे और आपको असल हाल भी बता देंगे। कल वह जमानिया में आने वाले हैं।

मैं––मगर मुझसे और उससे तो किसी तरह की मुलाकात नहीं है। वह मुझ पर क्यों भरोसा करेगा?

हरदीन––कोई चिन्ता नहीं, मैं आपसे उनकी मुलाकात करा दूँगा।

हरदीन की इस बात ने मुझे और भी ताज्जुब में डाल दिया। मैं सोचने लगा कि इसमें और गदाधरसिंह (भूतनाथ) में ऐसी गहरी जान-पहचान क्यों कर हो गई और वह इस पर क्यों भरोसा करता है?

भरतसिंह ने अपना किस्सा यहाँ तक बयान किया था कि उनके काम में विघ्न