पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१७१

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जो कुछ मैं खाने-पीने के लिए लाया हूँ उसे खा कर चैतन्य हो जायें ।"

जो गठरी हरदीन लाया था उसमें खाने-पीने का सामान था। उसने मुझे भोजन कराया, पानी पिलाया और इसके बाद मेरे हाथ में एक तलवार देकर बोला, "बस, अब आप उठिये और मेरे पीछे-पीछे चले आइए । इतना समय नहीं है कि मैं यहाँ आपसे विशेष बातें करूं, इसके अतिरिक्त जिस जगह पर आप कैद हैं, यह तिलिस्म का एक हिस्सा है, यहाँ से निकलने के लिए भी बहुत उद्योग करना होगा।"

भोजन करने से कुछ ताकत तो मुझमें हो ही गई थी, मगर कैद से छुटकारा मिलने की उम्मीद ने उससे भी ताकत पैदा कर दी । मैं उठ खड़ा हुआ और हरदीन के पीछे-पीछे रवाना हुआ । कोठरी का दरवाजा खोलने के बाद जब बाहर निकला तब मुझे मालूम हुआ कि मैं खास बाग के तीसरे दर्जे में हूँ जिसमें कई दफा राजा गोपालसिंह के साथ आ चुका था, मगर इस बात से मुझको बहुत ही ताज्जुब हुआ और मैं सोचने लगा कि देखो राजा साहब के खास बाग ही में यह दारोगा लोगों पर इतना जुल्म करता है और राजा साहब को खबर तक नहीं होती ! क्या यहाँ कई ऐसे स्थान हैं जिनका हाल दारोगा जानता है और राजा साहब नहीं जानते ?

खैर, मैं कोठरी से बाहर निकलकर बरामदे में पहुंचा जहाँ से बायें और दाहिने सिर्फ दो ही तरफ जाने का रास्ता था। दाहिनी तरफ को इशारा करके हरदीन ने मुझसे कहा, "इसी तरफ से मैं आया हूँ, दारोगा, जयपाल तथा बहुत से आदमी इसी तरफ बैठे हैं इसलिए इधर तो अब जा नहीं सकते, हाँ बाईं तरफ चलिए, कहीं-न-कहीं से तो रास्ता मिल ही जायगा।"

रात चांदनी थी और ऊपर से खुला रहने के सबब उधर की हर एक चीज साफ-साफ दिखाई देती थी। हम दोनों आदमी बाईं तरफ रवाना हुए। लगभग पच्चीस कदम जाने के बाद नीचे उतरने के लिए दस-बारह सीढ़ियां मिलीं जिन्हें तय करने के बाद हम दालान में पहुँचे जो बहुत लम्बा-चौड़ा तो न था मगर निहायत खूबसूरत और स्याह पत्थर का बना हुआ था। उस दालान में पहुंचे ही थे कि पीछे से दारोगा और जयपाल तेजी के साथ आते हुए दिखाई पड़े, मगर हरदीन ने इनकी कुछ भी परवाह न की और कहा, “इन दोनों के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ।"

हरदीन मुझे अपने पीछे करने के बाद अकड़कर खड़ा हो गया। उसने दारोगा को सैकड़ों गालियाँ दी और मुकाबला करने के लिए ललकारा, मगर उन दोनों की हिम्मत न पड़ी कि आगे बढ़ें और हरदीन का मुकाबला करें । कुछ देर तक खड़े-खड़े देखने और सोचने के बाद दारोगा ने अपनी जेब से एक छोटा सा गोला निकाला और हम दोनों की तरफ फेंका । हरदीन समझ गया कि जमीन पर गिरने के साथ ही इसमें से बेहोशी का धुआँ निकलेगा। उसने अपने हाथ से मुझे इशारा किया । गोला जमीन पर गिरकर फटा और उसमें से बहुत-सा धुआं निकला, मगर हम दोनों वहाँ से हर गये थे। इसलिए उसका कुछ असर न हुआ। उसी समय दारोगा ने हम लोगों की तरफ फेंकने के लिए दूसरा गोला निकाला।

इस दालान के बीचोंबीच में एक छोटा-सा चबूतरा लाल पत्थर का बना हुआ