पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१७४

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मुलाकात ओर साहब-सलामत हो गई थी।

जब भूतनाथ के हाथ से बेचारा दयाराम मारा गया, तब से मुझमें और भूतनाथ में एक प्रकार की खिचाखिची हो गई थी और वह खिचाखिंची दिनों-दिन बढ़ती ही गई यहाँ तक कि कुछ दिनों बाद हम दोनों की साहब-सलामत भी छूट गई।

एक दिन मैं इन्द्रदेव के यहाँ बैठा हुआ भूतनाथ के विषय में बातचीत कर रहा था, क्योंकि उन दिनों यह खबर बड़ी तेजी के साथ मशहूर हो रही थी कि 'गदाधरसिंह (भूतनाथ)मर गया।" परन्तु उस समय इन्द्रदेव इस बात पर जोर दे रहे थे कि भूतनाथ मरा नहीं, कहीं छिपकर बैठ गया है, कभी न कभी यकायक प्रकट हो जायगा। इसी समय दारोगा के आने की इत्तिला मिली जो बड़ी शान-शौकत के साथ इन्द्रदेव से मिलने के लिए आया था। इन्द्रदेव बाहर निकल कर बड़ी खातिर के साथ इसे घर के अन्दर ले गये और अपने आदमियों को हुक्म दे गये कि दारोगा के साथ जो आदमी आये हैं उनके खाने-पीने और रहने का उचित प्रबन्ध किया जाय।

दारोगा को साथ लिए हुए इन्द्रदेव उसी कमरे में आये जिसमें मैं पहले ही से बैठा हुआ था, क्योंकि इन्द्रदेव की तरह मैं दारोगा को लेने के लिए मकान के बाहर नहीं गया था और न दारोगा के आ पहुँचने पर मैंने उठकर इसकी इज्जत ही बढ़ाई, हाँ, साहब-सलामत जरूर हुई । यह बात दारोगा को बहुत ही बुरी मालूम हुई, मगर इन्द्रदेव को नहीं, क्योंकि इन्द्रदेव गुरुभाई का सिर्फ नाता निबाहते थे, दिल से दारोगा की खातिर नहीं करते थे।

इन्द्रदेव से और दारोगा से देर तक तरह-तरह की बातें होती रहीं, जिसमें मौके- मौके पर दारोगा अपनी होशियारी और बुद्धिमानी की तस्वीर खींचता रहा। जब ऐयारों की कहानी छिड़ी तो वह यकायक मेरी तरफ पलट पड़ा और बोला, "आप इतने बड़े ऐयार के लड़के होकर घर में बेकार क्यों बैठे हैं ? और नहीं तो मेरी ही रियासत में काम कीजिए, यहां आपको बहुत आराम मिलेगा, देखिये बिहारीसिंह और हरनामसिंह कैसी इज्जत और खुशी के साथ रहते हैं, आप तो उनसे ज्यादा इज्जत के लायक हैं।"

मैं--मैं बेकार तो बैठा रहता हूँ, मगर अभी तक अपने को महाराज धौलपुर का नौकर समझता हूँ, क्योंकि रियासत का काम छोड़ देने पर भी वहाँ से मुझे खाने को बरा- बर मिल रहा है।

दारोगा--(मुंह बनाकर)अजी, मिलता भी होगा तो आखिर क्या, एक छोटी-सी रकम से आपका क्या काम चल सकता है ? आखिर अपने पल्ले की जमा तो खर्च करते ही होंगे।

मैं--यह भी तो महाराज का ही दिया हुआ है!

दारोगा--नहीं, वह आपके पिता का दिया हुआ है। खैर, मेरा मतलब यह है कि वहाँ से अगर कुछ मिलता है तो उसे भी ऑप रखिये और मेरी रियासत से भी फायदा उठाइए।

मैं--ऐसा करना बेईमानी और नमकहरामी कहा जायगा और यह मुझसे न हो सकेगा।