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चन्द्रकान्ता सन्तति
 


चन्द्रकान्ता सन्तति झाक कर देखना तो जरूर चाहिये, शायद ईश्वर ने दिन फेरी । हो ।" ऐसी ऐसी बहुत सी बातें सोचते विचारते कोतवाल सद्द६ घोड़े से उतर पड़े र उन दोनों भाइयों के हे मुताबिक आगे यहे। यहा से पहाड़ियों का सिलसिला बहुत दूर तक चला गया था । fa जगह कोतवाल साहब खड़े थे वही दो पहाडिया इस तरह पुस में मिनी हुई थीं कि बीच में कोसों तक एक लम्बी दरार मालूम पटतो थी जिस के बीच में बहता हुआ पानी का चश्मा श्रौर दोनों तरफ छोटे छोटे दरख्त बहुत भले मालूम पड़ते थे, इधर उधर बहुत सी कदरार्थों पर निगाह पड़ने से यही विश्वास होता था कि ऋपियों र तपस्वियों के प्रेमी अगर यहा श्रादें तो अवश्य उनके दर्शन से अपना जन्म कृतार्य कर सके । देर के कोने पर पच कर दोनों भाइयों ने कोतवाल साह्य को धाः तरफ, झकने के लिये कहा। कोतवाल साह ने झाक कर देखा, समें ही एक दम चौक पड़े और मारे खुशी के भरे हुए गले से चिरा करे बोले , अ६ , मेरी किस्मत बागी । बेशक यह राती माधवी पांचवां बयान म च को विशर हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले। भा{ { वह उसे इन में बहुत देर तक न उरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्न था ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहा से चल पड़ी शौर बाग के बाहर हो चारों तरफ घूम घूम कर किसी ऐसे निशान को देने लगी जिसे यह मालूम हो कि किशोर किए सशको पर है। से गई है। मगर जब तक ३६ उम श्रम को पारी में न पहुँची तूच त* सिदार पैरों के धि के और किस तरह का कोई निशान केमोन पर दिखाई न पहा ।।