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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सतत पदियों का दाग देंढने लगी मगर कुछ मालूम न हुा, लाचार घोड़े पर सवार हो सोचने लगी कि किधर जाऊँ शोर क्या करूँ ।। | हम पहिने लिख आये हैं कि रथ पर जाते जाते ना किशोरी ने जान लिया कि वह धोखे में ली गई त उसके भैह से कई शन्द ऐसे निकले | जिन्हें सुन नकली कपला होशियार हो गई अ५ ३५ के नीचे कूद एक | घोड़े पर सवार हो पाछे की तरफ नौट गई । | लौटी हुई नकली कृम ना ठीक उसी समग्र घोडा दौडातो हुई उम चौराहे पर पहुंची जिस समय अमली ऋगला वा पाँच कर सोच । थे कि किधर जॐ क्या करूँ ? असो कमज़ा ने सामने से ? के साथ आते हुए एक सवार को देख घोडा रोकने के लिए ललकारा मगर वह य रुकने लगी थी, इ। उसे असली कमला के दाहिनी तरफ, वाली राई पर जाने के लिये चूमन था इसलिए अपने घोई को तेजी से कम करनी हो पड़ी । | जय अली कमला ने देखा कि सामने से आया है। मवार उसके ललकारने से किसी तरह नहीं सकता और दाहिनी सइक से निकल जाया चाहता है तो झट कमर से दुलाला पिस्तोल निकाल उसकै घोड़े पर चार किया । गोली लगते ही घोड़ा न की कमला के लिए हुए जमीन पर गिरी मगर घौड़े से गिरते ही वह बहुत जल्द संभल कर उठ खई हुई श्रीर उसने अपनी कमर से दुनाली पिस्तौल निकाल असली कमला पर गोली चलाई । असली कमला त पहिले ही है सभ्इली हुई थी, गोली की मार बना गई, फिर दूसरी गोली माई पर वह भी न ली । लाचार नकन मला ने अपनी पिस्तौन फिर भरने का इरादा किया मगर अमल कमला ने उसे युद्ध मौका न दिया । देन गोली बेकार जाते हे व समझ गई कि उमकी पिस्तौल खाली हो गई है, अस्तु हाथ में पिस्तौल लिए हुए झः उसके फल्ने पर १ गई और ललकार कर वो,