पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
दूसरा हिस्सा
२८
 

________________

दूसरा हिस्सा | कमला श्राज भी उसी कल वाने रले पर रवाना हुई और दोपहर होते होते उसी चौराहे पर पहुँची हा कल ललिता मिली थी। वे दोनों ३इक सामने वाली मड़क पर चले ।। | चौराहे के श्रागे लगभग तीन कोस चले जाने वाद खगव और पेयज ह मिली जिसे देख हरनामसिंह ने कहा, “इस राह से १५ ने आने में ज़रूर तकलीफ हुई होगी । | कमला० । बेशक ऐसा ही हुया होगा, और मुझे तो अभी तक निश्चय ही नहीं हुआ कि किशोरी इसी राह से गई है। न० { मगर मैं तो यही समझता हूँ कि रथ इसी रह से गया हैं और किशोरी का साथ छोड़ कोई दुतरी कारवाई करने के लिये ललित लौटी थी } कमजो० } शायद ऐसा ही हो । और थोडी दूर जाने बाद एक वैर की पजेर जमीन पर पड़ी हुई दिई दी । इरनामसिंह ने उसे देखते ही उग लिया और कहा, “३शक शिौरी इ3 हि ३ गई है, इस पाने को में खूब पहिचानता हूँ ।” कमन० { अप तो मुझे भी निश्चय है। गया कि किशोरी इधर ही से गई है। } हा, जो उसे मालूम हो गया कि उसने धोखा खाया और ८ रन के फदे में पड़ गई तब उसने यह पाजेब चुपके से जमीन पर फक्त दी । मला० । इसलिये कि चदै जानती थी कि उसकी खोज में बहुत । में दरी निकलेंगे और इधर झाकर इम पाजेब को देगे तो जान । जायने फि फिरी इधर हो गई है। | इनाम० } में क्याल करता हैं कि श्रागे चन कर कियौरी को के हो ? यौर भी होई चीज हम लोग जरूर देयं में । मा० । नेक ऐसा ही होगा ।