पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/११७

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दूसरा हिस्सा
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३० दूसरा हिस्सा तिलोत्तमा ठीक है, मैं ललिता के बारे में भी बहुत कुछ सोच रही हूँ, मुझे तो विश्वास हो गया है कि उसे कमला ने पकड़ लिया । माधवी० । सो उसे छुड़ाने की फिक्र करनी चाहिये ।। तिलोत्तमा० । मुझे इतनी फुरसत नहीं है कि उसे छुड़ाने के लिये जाऊँ, क्योंकि मेरे हाथ पैर किसी दूसरे ही तरदुद्द ने देकार कर दिये हैं जिसकी तुम्हें जरा भी खबर नहीं, अगर खवर होती तो अजि तुम्हें भी अपनी ही तरह उदास पाती ।। तिलोत्तमा की इस बात ने माधवी को चौंका दिया और वह घबड़ा कर तिलोत्तमा का मुंह देखने लगी । तिलोत्तमा० | मुंहे त्या देखती है ! मैं झूठ नहीं कहती | तु तो अपने ऐश वो शाम में ऐसी मस्त हो रही है कि दीन दुनिया की खबर नहीं । तु जानती ही नहीं कि दो ही चार दिन मै तुझ पर कैसी श्राफत आने वाली हैं। क्या तुझे विश्वास हो गया है कि किशोरी तेरी कैद में रह जायगी १ कुछ बाहर की भी खबर है कि क्या हो रहा है ? क्या बदनामी ही उठाने के लिए तू गया का राज्य कर रही है। मैं पचास दफे तुझे समझा चुकी कि अपनी चाल चलन को दुरुस्त कर मगर ने एक न सुनी, लाचार तुझे तेरी मर्जी पर छोड़ दिया और प्रेम के सबने ते हुक्म मानती भाई मगर अब मेरे सम्हाले नहीं सम्हलता । | माधवी० | तिलोत्तमा, आज तुझे क्या हो गया है जो इतना कूद रही है। ऐसी कौन सी श्राफ श्री गई है जिसने तुझे बदहवास कर दिया है ! क्या तु नहीं जानती कि दीवान साहब इस राज्य का इन्तजाम वैसी अच्छी तरह कर रहे हैं और सेनापति शौर कोतवाल अपने काम में तिने होशियार है ? क्या इन लोगों के रहते इमारे राप्य में कोई विप्न दाल सकता है ? | तिर्योत्तमा० । यह जरूर टीक है कि इन तीनों के रहते फोई इस रय में विप्न नद्द ले समता, लेकिन तुझे तो इन्हीं तीनों की खबर