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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

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चन्द्रकान्ता सन्तति नहीं ! कोतवाल साहव जहन्नुम में चले ही गए, दीवान साइव और सेनापति साइब भी अजि कल में लाया ही चाहते हैं बल्कि चले भी गए हों तो ताज्जुब नहीं ! माधवी० । यह त् क्या कह रही है ! तिलोत्तमा० । जी हा, मैं बहुत ठीक कहती हैं । विना परिश्रम ही यह राज्य वीरेन्द्रसिंह को हुआ चाता है । इसीलिए कहती थी कि इन्द्रजीतसिंह को अपने यहा मत हँसा, उनके एक एक ऐयार श्राफत के परकाले हैं । मैं कई दिनों से उन लोगों की कार्रवाई देख रही हैं। उन लोगों को छेड़ना ऐसा है जैसा श्रातिशबाजी की चरखी में आग लगा देना ।। माधवी० । क्या वीरेन्द्रसिंह को पता लग गया कि उनका लड़का यहा कैद है ? तिलोत्तमा० } पता नहीं लगा तो इसी तरह उनके ऐयर सय यहाँ पहुँच कर उधम मचा रहे हैं। माधवी० | तो तूने मुझे खबर फ्यों ने की है। तिलोत्तमा० । क्या खबर करती, तुझे इस पर को सुनने की दुट्टी भी है। माधवी० | तिलोत्तमा, ऐसी जली फटी रात का फना छोड दे श्रीर भुझे ठीक ठीक बता कि क्या हुश्री शौर क्या हो रहा है। सच पूछ तो मैं तेरे ही भरोसे कूद रही हैं। मैं खूब जानती हैं कि सिवाय तेरे मेरी रक्षा करने वाला कोई नही । मुझे विश्वास था कि इन चार पराधियों के बीच में अब तक मैं हूँ मुझ पर किसी तरह की श्राफ्व ने अवे', मगर अब तेरी बातों से यह उम्मीद विल्कुञ्ज जाती रही । | तिलो० । ठीक है, तुझे अब ऐसा भरोसा न रखनी चाहिये । इसमें फोई शक नहीं कि मैं तेरे लिए जान देने को तैयार हैं, मगर वे ही बता कि वीरेन्द्रसिंह के ऐया के सामने मैं क्या कर सकती हूँ ! एक बैंचा