पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१२०

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सा तिलोत्तमा० । । बहुत कुछ है, सुनो में कद्दती हूँ । दूसरे दिन में ललिता को साथ ले उस तालाब पर पहुची, देखा कि वीरेन्द्रसिंह के कई ऐयार वही बैठे बातचीत कर रहे हैं। मैंने छिप कर उनकी बातचीत सुनी । मालूम हुआ कि वे लो। दीवान साहब सेनापति और कोतवाल साइब को गिरफ्तार किया चाहते हैं। मुझे उस समय एक दिल्लगी सुझी । जय वे लोग राय पक्की घरके घर से जाने लगे, मेने व से कुछ दूर इट कर एक छक मारी और झट भाग गई । माधवी० । ( भुस्कुरा कर ) वे लोग धड़ गए होंगे | तिलोत्तमा० । बेशक घनदाए होंगे, उसी समय गाली गुफ्ता करने लगे, मगर हम दोनों ने वहां ठहरना पसन्द न किया । माधवी | फिर क्या हुआ? तिलोत्तमा० । मैने तो सोचा था कि वे लोग मेरी छींक से टर कर अपनी कार्रवाई रोकेंगे मगर ऐसा न हुआ । दो ही दिन कौ मेहनत में उन लोगों ने कोतवाल को गिरफ्तार कर लिया, भैरोसिंह और तारासिंह ने उन्हें बुरा धोखा दिया ।। | इसके बाद तिलोत्तमा ने कोतमाल साहब के गिरफ्तार होने का पूरा हाल जैसा हम ऊपर लिख अाए हैं माधवी से कहा, साथ ही उसके य भी कह दिया कि दीवान साव को भी गुमान हो गया है कि तुने किमी मर्द को यह ली कर रखा है और उसके साथ आनन्द कर रही है ।। | तिलोत्तमा की चुनी सच हाल सुन कर माधवी सोच सागर में गोते पाने लगी और आध घण्टे तक उसे तनोबदन की सुध न रद्दी, इसके बाद उसने अपने को तम्हाला और फिर तिलोत्तमा से बातचीत करना प्रारम किया । माधवी० । खैर जो हु'मा सौ हुआ। यह बता कि अब क्या करना चाहिये । तिलोनमा० । मुनासिब तो यह हैं कि इन्द्रजी उसिंह श्रीर किशोरी को छोट दो, बस फिर तुम्हारा कोई कुछ न बिगड़ेगा ।।