पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१३३

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चन्द्रकान्त सन्तति अटक कर) वो हो मुझे अब यहां से चले ही जाना चाहिए। अगर ऐसा ही या सो मुझे किश्ती पर चढ़ा कर यहाँ क्यों लाई १ शौरत० ! मैंने तो पहले ही अापको चले जाने का इशारा किया था मगर जव श्राप जल में तैर कर यहा आने लगे तो लाचार मुझे ऐसी करना पड़ा । जान धूझकर उस आदमी को किस तरह आफ्त में फँसा सफती हैं जिसकी जान खुद एक जालिम ऐयार के इथि से बचाई हो । शाप यह न समझे कि कोई अदमी इस तालाब में तैर कर यहाँ तक श्री सकता है, क्योंकि इसे तालाब में चारों तरफ जाल फेंके हुए हैं, अगर कोई आदमी पहा तेर कर पाने का इरादा करेगा तो बेशक जाल में फंस कर अपनी जान चवद करेगा । यही सच था कि मुझे आपके लिए किश्ती ले जानी पड़ी है। कुमार० । बेशक तवे इसके लिए भी मैं धन्यवाद देंगा । माफ करना में यह नहीं जानता था कि मेरे यहाँ आने से तुम्हारा नुक्मान हो, अब में जाता हैं मगर कृपा करके अपना नाम तो बता दो जिसमें मुझे याद रहे कि फलानी औरत ने बड़े वक्त पर मेरी मदद की थी। औरत० {( हँस कर } मैं अपना नाम नहीं किया चाहती शौर न इम धूप में आप यहाँ से जाने के लिए कहती हैं बल्कि में उम्मीद करती हैं कि आप मेरी मेहमान कवृल करेगे । । सुमार० । वाह वाह ! कभी तो आप मुझे मेहमान बनाती हैं और कभी यहा ते निकल जाने के लिए हुक्म लगाती है, अप लोग नो चारे करें ! अंग्र० 1 ( हँस कर ) खैर ये सब बाते पीछे होती रहेंगी, अब शाप यहा से उठे और कुछ भोजन करें क्योंकि म जानती हैं कि आपने अभी तक छ भजन नहीं किया है ।। युमार० । अभी तो लान सन्ध्या भी मद्द किया । लेकिन मुझे ताप ६ कि यहा तुम्३ पाए ६६ ला दिशाई नहीं देता।