पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४४

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अठवाँ वयान इस जगह हम उस तालाब का हाल खोलने है जिसका जिक्र कई फे ऊपर आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और बेनचरी कूदी थी, ये जिससे किनारे चै हमारे ऐया ने माधवी के दीवान कोतवाल और लेनापति को पकड़ने के लिए राय पक्ष** की भी हैं। यही तालाब उस रमणीक स्थान में पहुँचने का रास्ता था जिसमें ॐ ग्रर इन्द्रजीतसिंह कैद हैं । इसका दूसरा मोहाना वही पानी वाला मुर। था जिसमें कुअर इन्द्रजीतसिह घुसे थे श्रीर कुछ दूर जा कर जेलमियी देर लोट अाचे थे या जिसको तिलोत्तमा ने 'प्रय पत्थर के देके री बन्दै फरा दिया है । जिस पहाटी के नीचे यह तालाब था उसी पार्टी के दूसरी तरफ चह गुप्त रुन था जिसमें इन्द्रजीतसिई कैद थे | इस राह से हर एक का आना जाना मुश्किल था क्योकि जल के अन्दर अन्दर लगभग दो सौ हाथ के ज्ञान पता था, ऐयार लोरी वालवत्ता जा सकते थे जिनका म सूर्य सधा gा था और तैरना बम्बूवी जानने थे । पर इस तालाब की राह नै हौं तक पहुँचने के लिये कारीगरों ने एक सुत्रता भी किया था । उम सुर ग से इस तालावे व जाट ( लारे) तक भार ई। भातर एक सजवृत जजोर लगी हुई थी जिसे गाम कर वहाँ तक पहुंचने में ना हो मुई तो होता था । कोतवाल साह 3 को गिरफ्तार करने के बाद कई दफे चपला नै चाहा कि इसी तालाई की राष्ट् से इन्द्रजीतसिंह के पास पहुँच कर इधर के हाल चाल की खेपर क मगर ऐसा न कर सकी क्योंकि तिलोत्तमा में सुन्न पा सुइ बन्द कर दिया था । श्रप हमारे देश को निश्चय हो गया कि दुश्मन सम्हल मैद्या प्रौर उसको ह्य लोगों की पर हो गई।