पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१
दूसरा हिस्सा
 

________________

४१ धूम, दिमा भैरोमिए० । अगर कृरि को यह मालूम हो गया होगा कि म लोगों के आने जाने का रास्ता बन्द कर दिया गया तो वे चुप न बैठे रहेंगे कुछ न कुछ फसाद जरूर मचायेंगे । तारा० } चेशक ! इसी तरह की बहुत से बातें वे लोग कर रहे थे कि तालाब के उन पार जल में उतरता हुशा एक आदमी दिखाई पडा । वे लोग टकटकी वधि उस तरफ देखने लगे । वह श्रादमी जल में कुदा श्रीर जाट के पास पहुंच कर गोता मार गया जिसे देत भैरोसिंह ने कहा, "बेशक यह कोई ऐयार है जो माधवी के पास जाना चाहता है । चपला० । मगर माधवी की तरफ का ऐयार नहीं हैं, अगर भाधव की तरफ का होता तो रास्ता बन्द होने का हाल में जरूर मालूम होता । भैरोसि० | ठीक है । तारासिंह० 1 अगर माधवी की तरफ का नहीं है तो हमारे कुमार फा पक्षपाती होगा । देवी० { चर् लौटे तो अपने पास बुलाना चाद्दिये ।। मोटी ही देर बाद उम श्रादमी ने जाट के पास सुर निकाला और जाट पाम कर सुस्ताने लगा, कुछ देर बाद यिनारे पर चला आया शौर तालाब के ऊपर वाले चौतरे पर बैठ कुछ सोचने लगा । भैरै मिह पने टिकाने उॐ गौर धीरे धीरे उस आदमी की तरफ चले । जब उसने अपने पास किसी में आते देता तो उठ खा सुग्री, सय ही भैरोसिंह ने छावा दी, १३ मत, जहां तक मैं समझता हूं तुम भी उभी फी मदद किया चाते हैं। जिसके छुटाने की स्कि में एम र है । *म के इन वने ही उम आदमी में शुशी भरी आवाज रे