पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१५४

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सा राध ले इन्द्रजीतसिंह का पीछा किया । थोडी ही दूर पर उन लोगों को पा लिया और चारो तरफ से पैं। मारकाट शुरू कर दी। श्रग्निदत्त की निगाह किशोरी पर जा पडी । अवे क्या पूछना था ? सब तरफ का खयाले छोड़ इन्द्रजोतसिंह के ऊपर टूट पड़ा । बहुत से श्रदर्मियों से काटते हुए इन्द्रजीतमि। किशोरी को माल न सके और उसे छः शनवार चलाने लगे । अग्निदत को मौका मिना, इन्द्रजंतसिंह के हाथ से जख्मी होने पर भी उसने दम न लिया और किराः। को गोद में उठा ले भागा । यह देख इन्द्रजीतसिंह की बी 8 जून उत्तर अायी । इतनी भी को काट कर उसका पीछा तो न कर मऊ मार अपने ऐयारों को ललकार कर इस तरह की लड़ाई को कि उन 3 में से प्राधे तो चैदन होकर जमीन पर गिर पड़े और बाकी अपने कार के चले गये देख जान बचो भाग गये | इ-इजीतसिंह भी बहुत से जख्मों के लगने से चेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। चपला श्री भैरसिंह वगैरह बहुत ही बेदम हो रहे थे तो भी वे लो बेहोश इन्द्रजीतसिंह को उठा नह से निकन गर्ने र फिर किसी की निगाह पर न च दे। दसवाँ बयान - इम इन्द्रबह को किए हुए उनके प्यार लोग व से दूर निकल गए श्री चेदारी किशोरी को दुष्ट अग्निटत्त उठा कर अपने घर ते राय | ६ सय हाल देख किलोत्तमा चहा से चलती अनी 'ग्रेर । के अन्दर झरे में पची । देखा कि मुरग का दरवाजा । हुआ है। र ताल भी इन जगह जमीन पर पर है। उसने ताली उठा ले। र मुर के अन्दर ला किनाट २४ करती हुई माधवी के दम पची । भावी फ व इन 7 ते ६ या हो रही थी । दीवान सइद पर दिल्दु भैः न गन्। हो यह समझ मारे ६ में वह