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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्तो सन् ५२ घबड़ा गई थी और उसे निश्चय हो गया था कि अब किसी तरह कुशल नहीं है क्योकि बहुत दिनों की लापरवाही में दोकान साहब ने तमाम रियाया थौर फोन को अपने कब्जे में कर लिया था । तिलोत्तमा ने वहीं पहुँचते ही माधवी से कई :-- तिलो० । अत्र क्या सोच रही है और क्यों रोती हैं । मैंने पहिले ही कहा था कि इन बखेड में मन फैस, इनका नतीजा अच्छा न हो, वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग बली की तरह जिसके पीछे पडते हैं उसका सत्यानाश कर डालते हैं, पर तूने मेरी बात न मानी--अब यह दिन दैलने की नौबत पहुँच ।। माधव० । वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार यही नहीं आय', इन्द्रजीत जबर्दस्ती मेरे हाथ से ताली छीन कर चला गया, मैं कुछ न कर सकी । तिलो० { अरखिरे तु उनका कर ही क्या सकती थी १ । माधवी० । अब उन लोगों का क्या हाल है १ । तिलोत्तमा० । वे लोग लडते भिडते तुम्हारे सैंकडों श्रादमियों को यमलोक पहुँचाते निकल गये । किशोरी को आपके दीवान साक्ष्य उठा ले गई ! 7 उनके हाथ किशोरी ली गई तब उन्हें लइने भिड़ने की जरूरत हो क्या थी १ किशोरी की सूरत देख कर तो अस्मान पर को उता चिड़िया भी नीचे उतर शाता हैं फिर दीवान साइने क्या चीज हैं ? अव ते वह दुष्ट इस धुन में होगा कि तुम्हें मार पूरी तरह से राजा बन जाय और किशोरी को रानो बनावे, तुम उसका कर ही क्या सेकत हो । मरवयी० | हाय, मेरे चुने क्रम ने मुझे मिट्टी में मिला दिया | अब मैरी किस्मत मैं राय नहीं है, अब तो मालूम होता है कि मैं पनियों की तरह मार फिरू }। तिने १० } हा अगर किसी तरह यहू। मे जान बचा कर निकल अरश्न १ त भन्ने मां कर भ जन 3 लोग, नहीं तो बसु युद्ध में इद नदी है।