पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
८०
 

________________

चन्द्रकान्ता सन्तति ८० उसकी सूरत ने सम को अपने ऊपर मेहरबान बना लिया था, खास करके कुँअर निन्दसिंह के दिल में तो वह उनके खान और मील की मालिक ही हो कर बैठ गई थी इस लिए सब से ज्यादे दुःख छोटे कु श्रर साहेब | को हुआ ! यह सोच कर कि वेशक यह उसी औरत की कलाई है कुँअर श्रीनदसिंह की श्रॉल्ब में जले भर आया और कलेजे में एक अजीब किस्म का दर्द पैदा हुआ, मगर इस समय कुछ कहने या अपने दिल को । हाल जाहिर करने का मौका न समझ उन्होंने बड़ी कोशिश से अपने को सम्हाली और चुपचाप सभी का मुँह देखने लगे । पाठक, अभी इस औरत के बारे में बहुत कुछ लिखना है, इस लिए जब तक यह न मालूम हो जाय कि यह अौरत कौन है तसे तक अपने और आपके सुभीते के लिये इम इसका नमें किन्नरी रख देते हैं । | राजा बीरेन्द्रसिंह और उनके ऐया ने इन सब अदभुत बातों को | नो इधर कई दिनों में हो चुकी थीं छिपाने के लिए बहुत कोशिश की। मगर न हो सका। कई तरह पर रग बदल कर यह बात तमाम शहर में। फैल गई । कोई कहता था ‘महाराज के मकान में देव और परियों ने डेरा डाला है। कोई कहता था ‘गयाजी के भूत प्रेत इन्हें सता रहे हैं। कोई कहता था ‘दीवान ऋग्निदक्ष के तरफदार बदमाश और डाकु ने यह फसाद मचाया है !' इत्यादि बहुत तरह की बातें शहर वाले पुस मै गहने लगे, मगर उस समय उन बातों को ढेर बिल्कुल ही बदल गया वन राजा वीरेन्द्रसिंह के हुक में से देवसिंह ने उस सिंरकटी लाश को जो कोई में से निकत्तई थी उठवा कर सदर चौक में रचा दिया और उसके पास एक मुनादी वाले को यह कह कर पुकारने के लिए बैठा दिया वि---अग्निदत्त के तरफदार टाकू लोग जो शहर के रईस श्रौर अमीरी पो एताया परते थे ऐयारों के हाथ गिरफ्तार होकर मारे जाने लगे, श्राज एक कू मारा गया हैं दिसफी लाश यह है ।'