पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१९
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा | तोसरा वयान तेजगिंह के लॅटि श्राने रे राजा वीरेन्द्रसिंह बहुत खुश हुए और उन समय तो उनकी खुशी श्रीर भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने शैतानगढ़ जार अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल हो । गमानन्द की गिरफ्तारी सुन कर हँसते हँसते लोट राये मगर साथ ही इमके यह सुन कर कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह का पता रोहतासगढ़ में नहीं लगती बल्कि माम होता है कि वे रोतासगढ़ में नहीं हैं, राजा वीरेन्द्रसिंह उदास हो गये । तेजसिंह ने उन्हें हर तरह से समझाया र दिलासा दिया । यो देर बाद तेजसिंह ने अपने दिल की चे सर याते की जो किया चाते थे, बीरेन्द्रसिंह ने की राय बहुत पसन्द' की योर बोलेः । ' बीरेन्द्र | नुम्री कौन सी ऐसी तरकीब हैं जिसे मैं पसन्द न कर सफा, र य को कि म मम अपने साथ कि ऐयार धो ले जाश्रो ? ' तैन । मुझे तो इसे समय कई ऐयारी फी जरूरत थी मगर यहाँ कैयन 'चार मौजूद. श्रीः बारी सत्र कु र इन्द्रजीतसिंह का पता लगाने गये हुए हैं, पैर कोई हर्ज न परिदत बद्रीनाथ हो तो इसी लश्कर में रहने दीपियें, उन्हें किसी दूसरी जगह भेजना में मुनामिय नहीं *समुदतक फ्र्योंकि यहाँ बड़े हो चानाक और पुगने ऐयर प फाम है, कीदिरीजी ६ श्री तारा को मैं अपने साथ ले आऊँगा । | बीरेन्द्र०। अच्छी बात है, इन तीनों ऐया सेतुम्हारी काम बदबूदी चलेगा। • तेज० । जी नहीं, में तीनों ऐयारों को अपने साथ नहीं क्या चाहता बल्कि भरो श्री राम वहाँ का रास्ता दिला कर वापस कर देंगर | इसके बाद में दोनों दे से लट्टाक को मेरे पास पहुँचा र फिर श्राप या कु पर आनन्दसिंह को लेकर मेरे पास जायेंगे, तब यह स; कारवाई की जा पर जो में मापसे कह चुकी हैं। । बरेन्द्र | श्रर यह दारोगा वाली कितान जो तुम ले आये है