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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति चीज है कि हर एक के दिल को चाहे वह कैला ही नासमझ क्यों न हो | अपनी तरफ खेंच लेती है यहाँ तक कि जानवर भी इसके वश में हो कर अपने को भूल जाता है ! दो तीन दिन से कुअर इन्द्रजीतसिंह का दिल चुटीला हो रहा था, दरिया की बहार देखना तो दूर रहे इन्हें अपने तनोबदन की भी सुध न थी, ये तो अपनी प्यारी तस्वीर की धुन में सर झुकाए बैठे कुछ सोच रहे थे, इनके हिसाब चारो तरफ सन्नाटर था, मगर इस सुरीली आवाज ने इनकी गर्दन घुमा दी और उस तरफ देखने को मजबूर किया जिधर से वह अावाज आ रही थी ! किनारे की तरफ देखने से यह तो मालूम न हुअा कि बसी बजाने यो गाने वाला कौन है मगर इस बात का अन्दाजा जरूर मिल गया कि लोग बहुत दूर नहीं हैं जिनके गाने की विजि सुनने वालों पर जादू का सा असर कर रही है ! इन्द्र० | श्राहा, क्या सुरीली आवाज है !! । ग्रानन्द० ! दूसरी अावाज भी आई । बेशक कई औरतें मिल कर | गा ३ जा रही हैं। | इन्द्रजीत० । ( किश्ती का मुहूं किनारे की तरफ फेर कर ) ताज्जुब है कि इन लोगों ने गाने बजाने और दिल बहलाने के लिए ऐसी जगह पसन्द की ! जरा देखना चाहिए । | आनन्द० | क्या हुई है, चलिए। वृहे रिपदमतगार ने किनारे किश्ती लगाने और उतरने के लिए मन। फ़िया और बहुत समझाया मगर इन दोनों ने न मानी, किश्ती किनारे लगाई और उतर कर उस तरफ चले जिधर से अचाने आ रही थी । जगन्न में थोड़ी ही दूर जा कर उसे पन्द्रह नौजवान औरतों का झुण्ड नजर पडा ऊँ। रग विरगर पोशाक और कीमती जेवरों वे अपने हुस्न को दूना किए ऊँचे पेड़ से लटकते हुए एक फूले की फुला रही थीं। कोई वंसी कोई मृदग वजाती, कोई हाथ से ताल दे दे कर गा रही थी । उस हिंडोले