पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१०

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चौथा हिस्सा
 

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चोभा हिस्सा

जिस दालान में दारोगा गद्दता यो उसमें एक उम्भ के माथे लोहे ही एफ तार बँधी हुई थी जिसका दूसरा सिर छत में सूरज करके ऊपर की तरप नियाल दिया गया था। तेजसिंहू को किताब के पढने से मान्यूम हुथी कि इन तार को खंचने था दिलाने में वह घण्टा लेगा जो पसि दिविजयभि के दीवानाने में लगा हुआ है क्योंकि उस ताः ॥ दूसर? लिए उसी प्रएटे से बँधा है। जुत्र चिरसी तरह की मदद की जरूरत पड़ थी त दारोगा उसे तार को छेढ़ता था। उस दालान के बगल की एक मोठरी के अन्दर भी एक बड़ा । घण्टा लटकता र भिमके साथ वधी हुई लोहे की हार का दूसरा हिस्सा महाराज के दीवानाने में था | मराज भी पत्र तहाने वालों को होशियार किया बात है या और कोई जरूरत पडू थी , पर लिखी गति में यह ताने वाला घंटा भी ६जाय तो या झार यह धमि के मज | था कि उन का हल बहुत गुप्त था, तजना कैसी हैं ये उराके ग्रन्दर क्या इश हैं द इलि रिसाद पास जाम आठ दस दिदि के नार फिर पो भई मन्दिम न , इसके भेद भन्न मी तरह गुप्त रन जाते ।। र ऊपर लिए ये हैं कि अगली बागानन्द च एतार तक के मनि दिविजयसिंह तस्त्राने में ही था र लौट कर की समय नली रमानन्द अर्थात् तेजसिंह र दाइ यो फले गये कि तुम दोनों फसत पा कर मारे पास ग्राना । | मराज के हुक्म की तामील न हो मुकी क्योंकि दागेगा शो कैद र तेजति अपने जश्न में ले गये थे और ज्यादा रन्स दिन को उधर ही बीत या या जैसा कि हम ऊपर लिख ६ । 'बर तेजसिंह लौट र हराने में आये तो ज्योति को बहुत ही बाते समय र उ ोगी बना कर गद्दी पर बैठाया, उ नभयं सामने थे। गोठदिरों में से सरके फी नाज आई। तैरि समझ गये कि महाराज रहे हैं, ज्योतिपीजी फ तो लिटा दिया और फा%ि तुम होदो,