पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चन्द्रकान्ता सन्तति
२२
 

________________

चन्द्रकान्त सन्तति मैं महाराज से बातचीत करूंगा । थोड़ी देर में महाराज उस तहखाने में उसी सह से श्री पहुँचे जिस रद्द से तेजसिंह को साथ लाए थे । महा० । ( तेजसिंह की तरफ देख कर ) रामानन्द, तुम दोनों को हम अपने पास आने के लिए हुक्म दे गये थे, क्यों नहीं आये, और इस दारोगा को क्या हुआ जो होय होय कर रही हैं ? तेज० | महाराज इन्हीं के सबब से तो छाना नहीं हुआ। यकायक् बेचारे के घेट में दर्द पैदा हो गई, बहुत सी तर्कीबें करने के बाद अब कुछ आगम हुआ है। महा० । ( दारोगा के हाल पर अफसोस करने के बाद ) उस ऐयार का कुछ हाल मालूम हुआ है ।। तेज { जी नहीं, उसने कुछ भी नहीं बताया, खैर क्या हर्ज है, दो एक दिन में पता लग ही जायगा, ऐयार लोग जिद्दी तो होते ही हैं। थोड़ी देर बाद महाराज दिग्विजयसिंह वहाँ से चले गये । महाराज के जाने के बाद तेजसिंह भी तहखाने के बाहर हुए और महाराज के पास गये ।। दो घण्टे तक हाजिरी देकर शहर में गश्त करने के बहाने से विदा हुए पहर २त से कुछ ज्यादा गई थी कि तेजसिंह फिर महाराज के पास गये और बोले - तेज० । मुझे जल्द लौट आते देख महाराज ताज्जुब करते हैं। मगर एक जरूरी खबर देने के लिये थाना पड़ा। महा० । वह क्या है। तेज ० । मुझे पता लगा है कि भेरी गिरफ्तारी के लिए कई ऐयार | आये हुए है, महाराज होशियार रहे अगर रात भर मै उनके हाथ से बच गया तो कल जरूर कोई तकत्र करूंगा, यदि फँस गया तो खैर । | महाः । तो आज रात भर तुम यहीं क्यों नहीं रहते १ तेज ० । स्या में इन लोग के खौफ से बिना कुछ कार्रवाई किये अपने से छिपा १ वह नहीं हो सकता !!