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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति तहखाने के दारोगा ( ज्योतिषीजी ) के सुपुर्द कर और उसके बारे में बहुत सी बातें समझा बुझा कर असली रामानन्द को अपने लश्कर में उठा लाये ।। | तेजसिंह के जाने बाद हमारे नए दारोगा साहब ने खम्भे से बँधै हुए उस तार को खेचा जिसके सुबत्र से दिग्विजयसिंह के दीवानखाने वाला घण्टा बोलता था। उस समय दो घण्टे रात जा चुकी थी, महाराज अपने कई मुसाह को साय लिए दीवानखाने में बैठे दुश्मन पर फतह पाने के लिए बहुत सी तरकी सोच रहे थै, यकायक घण्टे की आवाज सुन कर चौके और समझ गये कि तहखाने में हमारी जरूरत है । दिदि जयसिंह उसी समय उठ खड़े हुए और उन जल्लाद को बुलाने का हुक्म दिया जो जरूरत पड़ने पर तहखाने में जाया करते थे और जान फ्री खौफ या निमकहलाली के सदर से वहां का हाल किसी दूसरे से कभी नहीं कहते थे। | महाराज दूसरे कमरे में गए, जब तक कपड़े बदल कर तैयार हों जल्लाद लोग भी हाजिर हुए। ये जल्लाद बड़े ही मजबूत ताकतवर और कद्दावर थे | स्याह २ग, मूळे चढ़ी हुई, पोशाक में केवल जाँघिया मिर्जई अोर कण्टोप पहिरे, हाय में भारी लेगा लिए, बड़े ही भयङ्कर मालूम होते थे । महाराज ने केवल चार जल्लाद को साथ लिया और इसी मामूली रास्ते से तहखाने में उतर गए । महज को आते देख दारोगा चैतन्य हो गया और सामने श्रा हाथ जोड़ कर भोला, “लाचार महाराज को तकलीफ देनी पड़ी ।” । महा० । क्या मामला है ? दारोगा | वह ऐयार मर गया जिसे दीवान रामानन्दजी ने गिरफ्तार किया था । मा० 1 ( चौक क ) है, मर गया !!