पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२५
चौथा हिस्सा
 

________________

चोथा सिर दारोगा । जी हाँ मर गया, न माम कैसी जहरीली बैग्नी दी गई थी कि जिराका असर यहाँ तक हुशा ! म } यह बहुत ही कुरा हुशा, दुश्मन समझेंगे कि दिग्विजयसिंह ने जान दूझ कर मारे ऐसार यो मार लिा के फायदे के बाहर मात है । दुश्मनों को अब एमर्स जिद्द हो जायगी और ये भी पानंद के खिलाफ घेहोशी की जगह जहर फा तय करने लगेंगे ले हमारा बदी नुकसान ऐगा "ग्रीर त दिम जान से मारे जायेंगे । दारोगा लोचा है, फिर क्या किया जाय । मह भूल तो दीवान खात्र यी है । | मह•ि 1 ( कुछ क्रोध में श्रीकर ) रामानन्द से पूरा जड़ है ! इन। मारने के लिए उसने अपने यो एयर मशहूर कर पा ३, रानी तो दरेन्द्रसिंर ६ क अदना ऐ4: श्रा। श्रर इस पद फर ले गई, चली छुट्टी हुई !! | मरा की बात सुन र मन । भन ज्योति पौडी खते श्री. फत थे कि देखो कितनी होशिन्दार : इरादुर राना स्वा • भी इन में कू बनी हैं ! : वेष्टि , ३ जे चा६ सो कर मकता है। माज ने निन्द्र की लाश को युद्ध : अंडर दूगी गद्य ले गार ज्ञान में देने के लिए लादा पो हुक्म दिया ! द ने इसी तरूपाने में दूस जगह जहाँ मुर्द गाई ते ६ ले जाकर उस लाश दो दा दिन, मराज अफसरि फसे हुए, राने के म भिल "प्राए झोर दृक्ष तोच में पड़े *ि देख रेन्द्र के एवार लोग इसका झ्या बदला लेते हैं। पांचवा बयान ऊपर लिपी चाटात के तीसरे दिन दो सत्र अपनी गद्दी पर | नामचा दे रहे थे और उस पाने ही पुरानी बातें पढ़ पढ़