पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२२०

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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिंसा कोई ताज्जुर की चीज थी । दिन्या खोलनै नदि पहिले कुछ फपड़ा हटाया | वो वेन फी तौर पर लगा हुआ था, इसके बाद झाक कर उस चीज को । देला ज उर हिग्वे के अन्दर थी । न मान्म उस दिई में क्या चीज यी कि जिसे देखते ही उस औरत थी अवश्था बिल्कुल बदल गई । झाक के देखते ही वह चिन्ने और पीछे की तरफ इट राई, पसीने से देर हो गई और बदन का ने लगा, चेहरे पर वाई उड़ने लगी और झार्दै वन्द हो गई । उस आदमी ने ऊनी से येठन की पड़ा डाल दिया और उस डिब्बे को उसी तरह बन्द कर उस थीरत के सामने मे हटा लिया । उस समय यजड़े के बाद से एक वाजे ग्राई, नानकजी ।' नानकप्रसाद उसी आदमी का नाम या च गठड़ो लाया था। उसका पद न दम्बा श्रीर में बहुत नाटा था मदन गोटा, रग गोरा, और कार के दाते कुछ खुइ घे । 'प्रावाज सुनते ही वह आदमी उठा शोर चादर या, भह ने इ लगाना चन्द कर दिया था, और तीन द्विपाई। मुस्तैद दर्याने पर खड़े थे ! नानक० } ( एक सिद्दी से ) क्या है। सिंह० । ( पार की तरफ इशारा फ्रके) मु३ मालुग होता है कि उस पार भत से प्रादमी म् है । दे ये कभी कभी बादल ९ जाने से जर चन्द्रमा की रोशनी पड़ती हैं तो सनि मान्म होता है कि वे लोग भी भाव हो । तरफ; इटे जाते हैं जिधर हमारा बड़ा जा रहा है। नान'F० ।( गौर से देवा ! ) ॐ ॐ त है । सिपाही० । नया ठिनिः शायद इमारे दुश्मन ही हो ! । नानक ८ । कोई ताक्ष्य नहीं, छ जुन नाद कई वहाचे पी तरफ बाने दो, पर मत नो। इतना कह कर भाभक्तपसाद अन्दर गया, वर्ष तक ट। श्रेरित के मी यास ठीक हो गये १ र १६ इस टोन कै इन्ने की तरफ के इस समय