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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति हाय मगर यह भी न हो सका क्योंकि उस जंगल में बहुत सी पगडण्डियां थीं जिन पर चल कर वह रास्ता भूल गया और किसी दूसरी ही तरफ जाने लगा। नानक लगभग अाध कोस के गया होगा किं प्यास के मारे बेचैन हो गया । वह जल खोलने लगा मगर उस जंगल में कोई चश्मा या सीता ऐसा न मिला जिसमें प्यास बुझता । अाखिर घूमते घूमते उसे पत्त की एक झोपड़ी नजर पड़ी जिसे वह किसी फकीर की कुटिंया समझ कर उसी तरफ चल पडा मगर पहुँचने पर मालूम हुआ कि उसने धरे व खाया । उस अ०१६ मई पेड़ ऐसे थे जिनकी डालिया झुक कर और आपस में मिल कर ऐ हो रही थी कि दूर से झेपही मालूम पड़ती थी, तो भी न नक के रिये वह जगह बहुत उत्तम थी, क्योकि उन्हीं थे। मैं उसे एक चश्मा माफ पानी का यह हुआ दिखाई पड़ा जिसके दोनों तरफ सुगनु स येदार पेड़ लगे हुए थे जिन्होंने एक तौर पर उस चश्मे को भी गाने म य ने, नीचे कर रखा था । नानक खुद खुशी चश्मे के नारे पहुँचा र हाथ धोने बाद जल पीकर अ.राम करने के लिये बैठ गया ।। योङ देर नश्में के किनारे बैठे रहने के बाद दूर से कोई चीज पानी में बह कर इमी तरफ, श्री हुई नानक ने देखी | म अने पर भालूम हुम्रा कि कोई कपडा है । वह जल में उतर गया और उस कपड़े की व लाकर गौर से देखने ली क्यों के यह वहीं कपड़ा था जो जड़े से उतरते मुमय रामौली ने अपनी कमर में लपेश था । | नानक ताज्जु में आकर देर तक उस कपड़े को देखत शीर तरह तरह की बातें सोचना रहा । राममोली उसके देखते देखते घोड़े पर सवार दो भलो गई थी, फिर उसे कयौकर विश्वास हो सकता था कि यह का राम भीली bf है। तो भी उमने कई दफे अनी खै मल *प्रोर उसे कपदे को देखा, स्विर विश्वास करना ही पड़ा कि यह राम