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चौथा हिस्सा
 

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चौथा हिस्सा मोली की चादर है। राममोली से मिलने की उम्मीद में वह चश्मे के किनारे किनारे रवाना हुआ क्योकि उसे इस बात का गुमान हु कि यो पर सवार होकर चले जाने आदि रामभोली जरूर कहीं पर इसी चश्मे के किनारे पहुँची होगी और किसी सवच से यह कपडा जल में गिर पड़ा होगा। | नानक चश्में के किनारे किनारे कोस भर के लगभग चला गया और चश्मे के दोनों तरफ उसी तरह स येदार पेड़ मिलते गये, यहाँ तक कि धुर से उसे एक छोटे से मन की सुफेदी नजर आई । वह यह सोच कर खुश हुआ कि शायद इसी मकान में रामभोली से मुलाकात होगी । थए कदम बढ़ाती हुश्री तेजी से जाने लगा और थोड़ी ही देर में उस मकान के पास जा पहुँचा । यह मकान चरम के बीचोबीच में पुल के तौर पर बना हुआ था । वाश्म बहुत ची। न ५, इसकी चोदाई ३ से पीने ६५ से ज्यादै न होगी । चश्मे के दोनों पार की जमीन इस मकान के नीचे आ गई थी और बीच में पानी बह जाने के लियें नहर भी चढ़ाई के बर बर पुल भी तरह प? एक दर ६। इझ ५ जिसके ऊपर वह छोटा सा ए*भािला मकान निहायत खूबसूरत बना हुआ था । नान के इस मकान के देख कर बहुत ही खुश हुशा और स.चने लगा है यह जरूर विसी मनचले शनि का बनवाया हुई होग। यहाँ से इस चश्मे और चारो तरफ के जल की चार सून ही नगर अाती है। इस मकान के अन्दर चल फर देखना चाहिये पाली हैं या कोई रहता है । नानक उस मकान के सामने ६ तरफ गई। उसकी कुर्सी परत ऊनी थी, पन्द्रह सोढ़ इने के बाद दोके पर पहुँचा । दाज, गुला हुआ था, वेधड़कन्दर इसे गया । | इस मकान के चारो पौनों में चार कोठष्ट्रिय और चारों तर चार लान बरामदै पत्तोर पर ये जिनके आगे मरे बराबर ऊँचा झला लग