पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७१
चौथा हिस्सा
 

________________

चौथा हिस्सा कागज का पुर्जा उस कोठड़ी में जरूर मिला जिसे भैरोसिंह ने उठा लिया और पढ़ कर सभे को सुनाया । यह लिखा हुआ था :---

  • धनपति रंग मचायो साध्यो काम ।

भोली भलि मुडि ऐहै यदि यहि ठाम ।' इस बरवे का मतलब किसी की समझ में न झाया, लेकिन इतना विश्वास हो गया कि अब इस जगह किशोरी के मिलना कठिन है ।उधर लाली इस वरवे को सुनते ही खिलखिला कर हँस पड़ी, लेकिन जब लोगों ने उसरी हँसने का सबब पूछा तो कुछ जवाब न दिया बल्कि सिर नीचे कर के चुप हो रही, जब ऐयारों ने बहुत जोर दिया तो बोली, “मेरे, हँसने का कोई त्रास सच नहीं है। बड़ी मेहनत करके किशोरी को मैने यही से छुटाया था । ( किशोरी को छुड़ाने के लिये जो जो काम उसने किये थे। सब कहने के बाद) में सोचे हुये थी कि इस काम के बदले में राजा वीरेन्द्र मिर से कुछ इनाम पाऊँगी, लेकिन कुछ न हुआ, मेरी मेहनत चौपट हो गई, मेरे देखते ही देखते किशोरी उस कोठडी में बन्द की गई थी । अत्र श्राप लोगों ने कोठरी खोली तो मुझे उम्मीद थी कि उसे देखेंगी और वह अपनी जुबान से मैरै परिश्रम का हाल कहेगी परन्तु कुछ नही । ईश्वर की भी क्या विचित्र गति है, वह क्या करता है सो कुछ समझ में नहीं अति ! वही सोच कर मैं इसी थी और कोई बात नही है । लाली की बातों को श्रीर सभे को चाहे विश्वास हो गया हो लेकिन हमारे ऐयारों के दिल में उसकी बातें न वैटीं । देखा चाहिये अब वे लोग लाली के साये क्या सलूक करते है ।। | tहित बद्रीनाथ की राय हुई कि अब इस तहरवाने में ठहरना सुनासिव नही, जय यहा की शायद वा से खुद युहा को परेशान हो गग्य तो हम लोगों की क्या बात है, वह भी उम्मीद नहीं है कि इस समय