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चन्द्रकान्ता सन्तति
 

बिल्कुल साफ हो गया क्योकि अगर उनका दिल साफ ही होता तो इस बात को छिप कर देखने के लिए आने की जरूरत क्या थी तो भी यह मानकर कि तेजसिंह के साथ की इनकी यह लड़ाई हमारी दुश्मनी का मन नहीं कहा जा सकता, हम फिर इनको छोड़ देते हैं। अगर अव भी ये हमारे साथ दुश्मनी करेंगे तो क्या हर्ज है, ये भी मर्द हैं और हम भी मर्द, देखा जायगा। __ महाराज शिवदत्त फिर भी छूट कर न मालूम कहाँ चले गए। बीरेन्द्रसिंह की शादी होने के बाद महाराज सुरेन्द्रसिंह और जयसिंह की राय से चपला की शादी तेजसिंह के साथ और चम्पा की शादी देवीसिंह के साथ की गई । चम्पा दूर के नाते में चपला की बहिन होती थी। ।

न्यासी मब ऐयारों की शादी भई हुई थी। उन लोगो की घर गृहस्थी चुनार ही में थी, अदल बदल करने की जरूरत न पड़ी, क्योंकि शादी होने के थोड़े ही दिन बाद बड़े धूमधाम के साथ कुँवर वीरेन्द्रसिंह चुनार की राजगद्दी पर बैठाए गए और कुंवर छोड राजा कहलाने लगे । तेजतिह उनो राजद वान मुकर र रुए योर इसीलिए सब ऐयारों को भी चुनार ही मेसना पा। मुरेन्द्रसिंह अपने लके को ग्रॉसी के मामने से हटाया 'नहीं चाहते थे, लाचार नीदमा मद्दा फतेविद के सुपुर वे भी चुनार ही में राने लगे, मगर राज्य का काम मिल्कुन वीरेन्द्रहिस के जिम्मे या, हाँ कभी कमी गय दे दे।। ते जनिए के बार जीतसिंह भी बी भाजार के सात गुनार में लगे । महाराज मुरेन्दरिद और जीतसिद में बहुत सुन्नत भीती दमत नि दिन बढ़ता ही गई। रात म जातसिंह इसी गारकि उनती जितनी स्टर की जाना था। थी। नादीगने दाम बाट ता की लार या। मी गानो न भागमा पर सके न रस कागो तरान:दे चन्द्रमाता के बड़े लडके