पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/३२

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पहिला हिस्सा
 

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पहिला हिस्सा की बात में निकल गए कुछ मालूम न पा थीं तक कि मुझे भी कोई बात उन लोगों की लिखने लायक न मिली लेकिन अब उन लोगों की मुमावत के, प्र काटे नहीं करते। | कौन जानना था कि गया जिरा शिवदत्त फिर बुला की तरह निकल आवेग १ किले खबर थी कि बेचार चन्द्र कान्ता की गौद से पले पाए दोनों होनहार ल* यो अल कर दिये जाए गे ? कौन साफ कह सकता था कि इन लो की वैशावली र राप्य में जितनी तरक्की होगी यकायक उतनी ही यादे श्राफत भी आ पड़ेगी ? खैर खुशी के दिन तो उन्होने काटे, अब मुनावत का घडी कौन झेन १ हाँ बेचारे जगन्नाथ ज्योतिया ने इतना अन्र कह दिया था कि वीरेन्द्रसिंह के राज्य शोर वश की बहुत कुछ वर होते. मगर मुसीबत को लिए हुए । खैर श्रागे जो कुछ होगा देखा जायगा पर इस समय ते सत्र के सब तर दुद में पड़े हैं । देखिए अपन एकान्त के कमरे म महाराजा सुरेन्द्र सिंह कैसा चिन्ता में बैठे हैं और वाई' तरफ गद्दी का कान ए राजा वीरेन्द्रसिंह अपने मामने बैठे हुए जीतहि की सूरत किस नेचैन। स देख रहे हैं। दोनो नाप बा अर्थ तु देवसिंह और तारासिंह अपने पास ऊपर के दर्ज पर बेठे हुए बुजुग और गुरू के समान जीतसिंह की तरफ कुरै हुए इस उम्र में बैठे हैं कि देले अब आखिरी हुक्म क्या होता हैं । (1वाय इन लोगों के इस कमरे में और कोई भी नहीं है, एक दम सन्नाटा छाया हुआ है । न मालूम इसके पहिले क्या क्या बातें हो चुकी है मगर इस वक्त ती महाराजा सुरेन्द्रसिंह ने इस सन्नाटे की सिर्फ इतना ही कह के तांदा, *बर चम्पा और चपला की भी दति मान लेनी चाहिए । जं.त० | जो मजी, मगर देवास के लिए क्या हुक्म होता है ? सुरेन्द्र० । और तो कुछ नहीं सिर्फ इतना ही ख्याल है कि चुनार की हिफाजत ऐसे वक्त है क्यों कर होगी १ जीत० । मैं समझता हूं कि यह की हिफाजत के लिए तारा बहुत है। और फिर वक्त पड़ने पर इस बुढौती में भी में कुछ कर गुजरूर ।