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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति पास श्रावे तो गला दबा कर मार डालू । नहीं नही, वीर-पुत्र होकर स्त्री पर हाथ उठाना ! यह मुझसे न होगा, तब क्या भूखे प्यासे जान दे देना पड़ेगा ? मुसलमानिन के घर में अन्न जल कैसे ग्रहण करू गा ! हाँ ठीक है, एक सूरत निकल सकती है । (दीवार को तरफ देख कर) इसी खिडकी से वे लोग बाहर निकल गई हैं । अबकी अगर यह खिडकी खुले और वह इस कमरे में आये तो में जबर्दस्ती इसी राह से बाहर हो जाऊँगा ।” मृते प्यासे दिन बीत गया, अन्धेरा हुअा चाहता था कि वही छोटी सी लिच्की खुली और चारो औरतों को साथ लिए वह पिशाची ग्रा मौजूद हुई ! एक औरत थ में रोशनी दूसरी पानी तीसरी तरह तरह की मिठाइयों से भरा चॉदी का थाल उठाए हुए और चौथी पान का जाऊ इब्वा लिए साथ मौजूद थी। गनन्दसिंह पलंग से उठ खड़े हुए और बाहर निकल जाने की उम्मीद में उस पिडकी के अन्दर घुसे । उन शौरतों ने इन्हें बिलकुल न रोका ज्योकि वे जानती थी कि सिर्फ इस खिडकी ही के पार चले जाने से उनका काम न चलेगा। | सिड़की के पार तो हो गए, मगर श्रागे अन्धेरा था । इस छोटी सी कोठडी में चारों तरफ घूमे मगर रास्ता न मिला, हाँ एक तरफ बन्द दवाजा मालुम हुयी जो किसी तरह खुल न सकता था, लाचार फिर उसी कम में लौट आए। उम श्रीरत ने इंस कर कहा, "मै पहिले ही कह चुकी हैं कि श्राप मुझसे अलग नहीं आ सकने । खुटा ने मेरे ही लिए शापको पैदा किया । है । गफम कि आप मेरी तरफ पयाल न करते र मुफ्त में अपनी जान गजाते है । वैदिए, जाइए पीजिए, ग्रानन्द कीजिए, किस सोच में ! ग्रानन्द० 1 ते छुथा साऊँ ? गौर० । क्यों हर्ज क्या ? ? खुदा सत्र का एक है ! उसी ने हमको