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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति कमजोरी ने उ में चलने फिरने लायक ने रक्खा, फिर पल पर अकिर लेट गये और ईश्वर को याद करने लगे। । यकायक बाहर धम्माके की आवाज आई जैसे कोई कमरे की छत पर से कूदा हो, आनन्दसिंह उठ बैठे और वजे की तरफ दखने लगे। सामने से एक आदमी आती हुआ दिखाई पड़ा जिसकी उम्र लगभग चालीस वर्ग के होगी ! सिपाहियाना पौशीक पहिरे, ललाट में त्रिपुण्डे लगाये, कमर में नीमचा खञ्जर और ऊपर से कलन्द लपेटे, बगल में मुसाफिरी का झोला, हाथ में दूध से भरा हुआ लोटा लिए शानन्दसिंह के सामने ! पड़ी हुयी और बोली : | *ग्रफसोस ! श्राप राजकुमार होकर वह काम करना चाहते हैं जो ऐया जासूसों या अदने सि के करने लायक हो ! नतीजा यह निकला ‘क इस चाण्डालिन के यहा फसना पडा । इस मकान में आये अपि कै दिन हुए १ घबराइये मन, में श्रापका दोस्त हैं दुश्मन नही । | इम सिपाही को देख कर ग्रानन्दसिंह ताज्जुब में आ गये और सोचने लगे कि यह कौन है जो ऐसे वक्त में मेरी मदद को पहुचा । खैर जो भी इ, त्रैश क मा तैरखा है बदख्याह नहीं । यानन्द० 1 जहां तक संयाल करता हूँ यहा ये दूसरा दिन है । सिप० । कुछ अन्न जल तो न किया होगा । ग्रानन्द 1 कुछ नहीं ! सिपाही० 1 हाय ! बीरेन्द्रसिंह के प्यारे लटके की यह दशा !! लीजिये * श्रापको पानी पीने के लिये देता है ।। यानन्द० | पहिले मुझे मालूम होना चाहिये कि आपकी जात उत्तम है ग्रोर मुझे धोखा देकर प्रधम करने की नीयत नही है । faपा० 1 ( दति के नीचे जुन टाव कर ) राम राम, ऐमा स्वग्न में भी रदयाल न कनिया कि में धावा देरर अापक प्रजाती करू गा । मैन पद हा साचा था कि अाप शक करेंगे इसलिये ऐसी चीज लाया