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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चन्द्रकान्ता सन्तति किरयली अपने मकान की तरफ गया, इधर पंडित बद्रीनाथ और पन्नालाल वरहै निराली पई कर शपुस में बातें करने लगे :--- | पन्ना० । क्यो यारो, यह क्या मामला है जो आज हम लोग छोड़े जाते हैं ? राम | सुलह वाली बात तो हमारी तत्रीयत में नहीं बैठती । चुन्नी० । अजी कैसी सुलह और कहाँ का मेल ! जरूर कोई दूसरा ही मामला है। प्योतिपी० । बेशक शिवदस लाचार होकर हमें लोगों को छोड रहा है । बटी० । क्यों साहब भैरोसिंह, श्राप इस बारे में क्या सोचते हैं ? भैरो० } सोचेंगे क्या ? असल जो बात है मैं समझ गया । बद्री० { भला कहिए तो सही क्या समझे ? भैरो० । इसमें कोई शक नहीं कि हमारे साथियों में से किसी ने यहा के किमी मुद्द् को पकड़ पाया है, इनको कहलो भेना होगा कि जब तक हमारे ऐसार जुनार न पहुँच जायंगे उनको न छोड़ेंगे, बस इसी से ये बातें पनाई जा रही है जिसमें हम लोग जल्दी चुनार पहुँचे ।। | बद्रो० } शाश, त ठीक सोचा, इसमें कोई शक नहीं, मैं सम ग हैं शिवदत्त की जोरू लच्का या लड़की पकड़ी गई है तभी वह इतना र २३ न! तो दूसरे की वह कर परवाह करने वाला है, तिस पर इन लोगों के मुकाते में । | ** } बन सस वही बात है, और अब हम लोग सधै चुनार क्य जाने लगे ज तक कु दक्षिणा न ले ले ।। पट्टी० | देगा ते क्या दिनी मचाता हैं ? ३० । ( ग र ) में तो शिवदत्त से माफ कहा कि मेरे पैरों में ट, तीन करने में भी चुनार नहीं पहुँच सकता, घोड़े पर सवार होन bfपरा, चैन की यारी से कतम पा चुका हूँ, पालकी पर घायला