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चन्द्रकांता सन्तति
 

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७१ | चद्रकान्ता सन्तुति को इस्तीफा दे दिया जिस दिन पिता ने मुझे निकाल बाहर किया, अगर नानिहाल में मेरा ठिकाना न होता या मेरे नानी का उनको खौफ न हस्ता तो शायद वे उसी दिन मुझे वैकुण्ठ पहुचा देते ! अवै मुझे उस घर से रत्ती भरे मुहब्बत नहीं है। पर वहिन ने यह बड़ा काम किया कि उस दुष्टा को वहॉ से निकाल लाई और मेरे हवाले किया | जब मै गम की मारी घबड़ी जाती हैं तभी उस पर दिल की बुखार निकालती हूँ जिससे कुछ ढाढस हो जाती है । | कमला०। मुझे तो अभी तक उसके ऊपर गुस्सा निकालने का सोका ही न मिला, कहो तो ग्राज चलते चलाते में भी कुछ बुखार निकाल लें । किशोरी० | क्या हर्ज है, ना ले । कमला कमरे के बाहर चली गई । उसके पीछे आधे घन्टे तक किशोरी को चुपचाप कुछ सोचने का मौका मिला। उसकी सहेलियाँ वहाँ मौजूद थीं मगर किसी को बोलने का हौसला नहीं पड़ा। आधे घन्टे बाद कमला एक कैदी अौरत को लिये हुए फिर उस कमरे में दाखिल हुई । | इस श्रीरत की उम्र तीस वर्ष से कम न होगी, चेहरे मोहरे और रंगत से तन्दुरुस्त थी,कह सकते है कि अगर इसे अच्छे कपड़े और गहने पहाये जायें तो बेशक हसीनों की पक्ति में बैठाने लायक हो, पर न मालूम इसकी दुर्दशा क्यों कर रखी है और किस कर पर कैदी बना डाला है ! इस शौरत को देखते ही किशोरी का चेहरा लाल हो गया और मारे गुस्से के तमाम बदन थर थर काँपने लगा । कमला ने उसकी यह . दशा देख अपने काम में जल्दी की अौर उन सहेलियों में जो उस कमरे में खड़ी सब कुछ देख रही थी एक की तरफ कुछ इशारा करके हाथ चहा । वह दूसरे कमरे में चली गई और एक वैत लकिर उसने कमला के हाथ में दे दिया ।