पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/६५

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पहिला हिस्सा
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| ७२ पहिला हिस्सा कई औरतों ने मिल कर उस कैदी औरत के हाथ पैर एक साथ ही मजबूत बॉधे और उसे गेंद की सरह लुढ़का दिया । यहाँ तक तो किशोरी चुपचाप देखती रही मगर जब कमला कमर कस कर खड़ी हो गई तो किशोरी का कोमल कलेजा दहल गया और इसके अागे जो कुछ होने वाला था देखने की ताब न लाकर वह दो सहेलियों को साथ ले कमरे के बाहर निकल वाग की रविशों पर टहलने लगी । । किशोरी चाहे बाहर चली गई मगर कमरे के अन्दर से श्राती हुई चिल्लाने की आवाज बरोबर उसके कान में पडती रही। थोड़ी देर बाद कमला किशोरी के पास पहुँची जो अमी तक बाग मैं टहल रही थी। किशोरी० । कहो उसने कुछ बताया या नहीं ? कमला ०। कुछ नहीं, खैर कहाँ जाती है आज, नहीं कृल, कुल नहीं पर, अररि चताचेगी । अब मुझे रुखसत करो क्योकि बहुत कुछ काम करना है। किशोरी० । अच्छा जा, मैं भी अब घर जाती हैं नहीं तो नानी इसी जगह पहुँच क रन होने लगेंगी ।( कमला के गले मिल कर ) देख अत्र में तेरे ही भरोसे पर जी रही हूँ ! कमन्ना। अब तक दम में दम है तब तक तेरे काम से बाहर नहीं हैं। | कमन्ना व से रवाना हुई । उसके जाने के बाद किशोरी भी अपनी सरिया को साथ ले वहाँ से चली श्रीर थोडी ही दूर पर की एक बड़ी चेना के अन्दर जा पहुँची । बारहवाँ बयान अर इम भापको एक दूसरी ही सरजमीन में तेचल कर एक दूसरे ही रमीक स्थान की सैर करा कर तथा इसके साथ ही साय ? ताव