पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८९
पहिला हिस्सा
 

________________

पहिला हिस्सा नीचे नीचे | यार की गई है, क्योंकि चारो तरफ सिवाय पत्थर के ईट चूना या लफ़ी दिखाई नहीं पड़ती थी । यह सुर अन्दाज में दो सौ गज लम्यी होगी | इमे त करने बाद फिर एक बन्दै दुर्वाजा मिला । उसे खोलने पर यहा मी ऊपर चढ़ने के लिए वैसी ही सीढ़िया मिर्ली जैसी शुरू में पहिली कोठडी खोलने पर मिली थी ! काली औरत रमझ गई कि अब यह सुरङ्ग ते हो ग’ और इस कोठडी का दवजि खुलन से हम लोग जरूर किसी मकान या कमरे में पहुचेगे, इसलिए उसने कोठडी को अच्छी तरह देख भाल कर मोमबत्ती गुन कर दी । म ऊपर लिन्द' ये हैं श्रीर फिर याद दिलाते हैं कि इस सुरंग में जितने देर्वाने हैं भ में इस किस्म के ताले लगे हैं जिनमे बाहर भीतर दोनों तरफ से चाभी लगती है, इस हिसाब से ताली लगाने का सूराख इस पार से उस पार तक ठहरा, अगर दवजे के उरी तरफ अन्धेरा न हो तो उसे सुराख में अखि लगा कर उधर की चीजें खुवी देखने में श्रा सकती है ।। | जय काली औरत मोमबत्ती गुल कर चुकी तो उसी ताली के सूराख से आती हुई एक बारीक रोशनी कोठटी के अन्दर मालूम पड़ी। उस ऐयारा ने सुराख में प्राप्त लगा कर देखा । एक बहुत ही शालाशान कमरा बड़े तकल्लुफ से सजा हुआ नजर पड़ा, उसी कमरे में क्रेशकीमती भसह पर एक अधेड़ शादी के पास बैठो कुछ बातचीत और हँसी दिल्लगी करती हुई माधवी भी दिखाई पट्टी ! अव विश्वास हो गया कि इसी से मिलने के लिए माधवी रोज आया करती है। इस मर्द में क्रिस तरह की खूब्यूरती न थी तिस पर भी माधवी न मालूम इसकी किस सूची पर जी जान से मर रही थी और यही प्राने में अगर इन्द्रजीतसिंइ विप्न डालते थे तो क्यों इतना परेशान हो जाती थी ! उस काली म्यरत ने इन्द्रजीतसिंह को भी उधर का हान देखने के लिए कहा । कुमार बहुत देर तक देखते रहे। उन दोनों में क्या क्या बात