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चन्द्रकान्ता सन्तति
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चद्रकान्ता सन्तति भैरो०{ कुमार को वहाँ से निकाल ले ना तो कोई बड़ी बात नहीं है। तारा० } मगर उन्हें भी तो कुछ सजा देनी चाहिए जिनकी बदौलत कुमार इतने दिनों से तकलीफ उठा रहे हैं। भैरहे० | जरूर, विना सजा दिए जी कब मानेगा ! बुद्री० । जहाँ तक हम समझते हैं कल वाली राय बहुत अच्छी है। भैरो० } उससे बढ़ कर कोई यि हो न सकती, ये ग भी। क्या कहेंगे कि किसी मे काम पहा था । बड़ी० । यहाँ तो बस ललिता और तिलोत्तमा ही शैतानी की जड़ हैं, सुनते हैं उनकी ऐयारी भी बहुत चद्दी बढ़ी है। तारा० ! पहिले उन्हीं दोनों की खबर ली जायेगी । | भै० } नहीं नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं, उन्हें गिरफतार किये विनों ही हमारा काम चल जाय, व्यर्थ कई दिन चर्याद करने की अब मौका नहीं है ।। | तारा० । हाँ यद्द ठीक है, हमें उनकी इतनी जरूरत नहीं है, और क्या टिक ना जब तक हम लोग अपना काम करें तब तक वे चाची के फन्दै में श्रा फैंसे ।। मैं० 1 बेशक ऐसा ही होग, क्योंकि उन्होंने कहा भी शुकि तुम लौर इस फाम को करी तब तक बन पड़ेगा तो ललिता और विलोत्तमा को भी फैंस गई । बद्री० | वैर ज्ञ होगा देखा जायगा, अब हम लोग अपने काम में यॊ देर कर रहे हैं ? भैरो० 1 देर की ज़रूरत क्या हैं ठिए, हाँ पहिले अपना अपना शिकार बाट लीजिए। | बद्री० [ दीवान ग्राइव को तो मेरे लिये छोड़िये । भ० । हाँ श्रापका उनका वजन भी बराबर है, अच्छा में सैनापति } एयर ढुंग ।।