पृष्ठ:चन्द्रकांता सन्तति - देवकीनन्दन खत्री.pdf/९२

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दूसरा हिस्सा
 

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दूसरा हिस्सी उसका कलेज दहला दिया ! उसने उन सवारों की तरफ अच्छी तरह डेजा जी २५ को घेरे हुए सथ साथ जा रहे थे । वह बखूबी समझ गई कि इन भया में, चैम। कि कहा गया था, कोई भी अौरत नहीं है सन्न मर्द ही है। उसे निश्चय हो गया कि वह अाफन में फस गई और घबड़ाहट में नीचे लिखे कई शब्द उसकी जुबान से निकल पड़े : चुनार तो पूरब है, मैं दक्खिन तरफ क्यों जा रही हैं ? इन। सगरों में तो एक भी लेडी नजर नहीं आती ! बेशक मुझे धोखा दिया गया } में निश्चय कह सकती हैं कि मेरी प्यार कमला कोई दूसरी है । अफसोस !” रथ में बैठी हुई कमला किशोरी के मुँह से इन बातों को सुन कर होशियार हो गई और झट २५ के नीचे कूद पडी, साथ ही बहलवान ने भो बैलों को रोका और सवारों ने बहुत पास झाकर रथ को घेर लिया है कमला ने चिल्ला कर चुछ मह जिसे किशोरी किल्कुल न समझ सफा, हा एक सवार घोड़े से न चे उतर पड़ा और कमला उ6 घई पर सवार हो तेजी के साथ पीछे की तरफ लौट गई । अब किशोरी को अपने धोखा खाने श्रौर श्रापत ३ फेम जाने का पूरा विश्वास हो गया और वह एक दम चिसा कर बेहोश हो गई । तीसरी वयाने सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है । जबर्दत " भी परले सिरे । है । या मजल कि इसकी मिनदारी में कोई धूम तो मनाये । इसके अाने की खबर ८ घरटे पहले ही से ६ जाती है । ३६ देखिये असमान के जगमगाते हुए तारे कितनी बेचैनी और दाम के सा५ ६सरत भरी निगाहों से जमीन की तरफ देख रहे हैं जिनकी चूत और चलाचली है। वर्ना डेरा यारों की सुन्दर कलियों ने भी मुरकुरान