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चन्द्रगुप्त
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योग! प्रमाणित करना होगा फिलिप्स! नहीं तो खड्ग इसका न्याय करेगा।

सिकन्दर—उत्तेजित न हो सिल्यूकस!

फिलि॰—तलवार तो कभी का न्याय कर देती, परन्तु देवपुत्र का भी जान लेना आवश्यक था। नहीं तो ऐसे निर्लज्ज विद्रोही की हत्या करना भी पाप नहीं, पुण्य है।

[सिल्यूकस तलवार खींचता है]

सिकन्दर—तलवार खींचने से अच्छा होता कि तुम अभियोग को निर्मूल प्रमाणित करने की चेष्टा करते! बतलाओ, तुमने चन्द्रगुप्त के लिए अब क्या सोचा?

सिल्यूकस—चन्द्रगुप्त ने अभी-अभी कार्नेलिया को इस नीच फिलिप्स के हाथ से अपमानित होने से बचाया हैं और मैं स्वयं यह अभियोग आपके सामने उपस्थित करनेवाला था।

सिकन्दर—परन्तु साहस नहीं हुआ, क्यों सिल्यूकस!

फिलि॰—क्यों साहस होता―इनकी कन्या दाण्ड्यायन के आश्रम पर भारतीय दर्शन पढ़ने जाती हैं, भारतीय संगीत सीखती हैं, वहीं पर विद्रोहकारिणी अलका भी आती है! और चन्द्रगुप्त के लिए यह जनरव फैलाया गया है कि यही भारत का भावी सम्राट् होगा।

सिल्यूकस—रोक, अपनी अवोधगति से चलने वाली जीभ रोक!

सिकन्दर—ठहरो सिल्यूकस! तुम अपने को विचाराधीन समझो। हाँ, तो चन्द्रगुप्त! मुझे तुमसे कुछ पूछना हैं।

चन्द्रगुप्त—क्या है?

सिकन्दर—सुना हैं कि मगध का वर्तमान शासक एक नीच-जन्मा जारज सन्तान है। उसकी प्रजा असन्तुष्ट हैं और तुम उस राज्य को हस्तगत करने का प्रयत्न कर रहे हो?

चन्द्रगुप्त—हस्तगत! नहीं, उसका शासन बड़ा क्रूर हो गया है। मगध का उद्धार करना चाहता हूँ।