पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/३३

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कुछ ले जा सके ले जाय, पर चाणक्य की एक चाल यह भी थी, क्योकि उसे मगध की प्रजा पर शासन करना था। इसलिए यदि घनानन्द मारा जाता तो प्रजाओ के और विद्रोह करने की सम्भावना थी। इसमें स्थविरावली तथा ढुण्ढि के विवरण से मतभेद है, क्योकि स्थविरावलीकार लिखते हैं कि “चाणक्य ने धनानन्द को चले जाने की आज्ञा दी, पर ढुण्ढि कहते है, चाणक्य के द्वारा शस्त्र से घनानन्द निहन हुआ । मुद्राराक्षस से जाना जाता है कि यह विष-प्रयोग से मारा गया। पर यह बात पहले नन्दो के लिए सम्भव प्रतीत होती है।” चाणक्य की नीति की ओर दृष्टि डालने से यही ज्ञात होता है कि जान-बूझकर नन्द को अवसर दिया गया, और इसके बाद किसी गुप्त प्रकार से उनकी हत्या हुई ।

कई लोगों का मत है कि पर्वतेश्वर की हत्या बिना अपराध चाणक्य ने की। पर जहाँ तक सम्भव है, पर्वतेश्वर को कात्यायन के साथ मिला हुआ जानकर ही चाणक्य के द्वारा विपकन्या पर्वतेश्वर को मिली और यही मत भारतेन्दु जी का भी है। मुद्राराक्षस को देखने से यही ज्ञात भी होता है कि राक्षस पीछे पर्वतेश्वर के पुत्र मलयकेतु से मिल गया था । सम्भव है कि उसका पिता भी वररुचि की ओर पहले मिल गया हो और इसी बात को जान लेने पर चन्द्रगुप्त की हानि की सम्भावना देख कर किसी उपाय से पर्वतेश्वर की हत्या हुई हो ।

तात्कालिक स्फुट विवरणों से ज्ञात होता है कि मगध की प्रजा और समीपवर्ती जातियाँ चन्द्रगुप्त के प्रतिपक्ष में खड़ी हुई, उस लड़ाई में भी अपनी कूटनीति के द्वारा चाणक्य ने आपस में भेद करा दिया। प्रबल उत्साह के कारण, अविराम परिश्रम और अव्यवसाय से, अपने
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However mysterious the nine Nandas may be if mdeed they really were nine, there is no doubt that the last of them was deposed and slam by Chandragupta.

--V.A.Smith. E H. of India.