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का शुल्क-निर्धारण तथा निरीक्षण करता था । किसी शिल्पी के अगभग करने से वही विभाग उन लोगो को दण्ड देता था। सम्भवते यह विभाग म्युनिस्पैलिटी के बराबर था, जो कि पाँच सदस्यों से कार्य्य निर्वाह करता था ।

द्वितीय विभाग विदेशियो के व्यवहार पर ध्यान रखता था । पीडित विदेशियो की सेवा करता था, उनके जाने के लिए वाहन आदि का आयोजन करना, उनके मरने पर उनकी सम्पत्ति की व्यवस्था करना और उन्हे जो हानि पहुँचावे, उनको कठोर दण्ड से दण्डित करना उनका कार्य्य था । इससे ज्ञात होता है कि व्यापार अथवा अन्य कार्यों के लिए बहुत-से विदेशी कुसुमपुर में आया करते थे।

तृतीय विभाग प्रजाओ के मरण और जन्म की गणना करता था और उनपर कर निर्धारित करता था ।

चतुर्थ विभाग व्यापार का निरीक्षण करता था और तुला तथा नाप का प्रबन्ध करता था ।

पचम विभाग राजकीय कोष का था, जहाँ द्रव्य बनाये जाते और रक्षित रहते थे ।

छठा विभाग राजकीय कर का था, जिसमे व्यापारियो के लाभ
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बौद्ध लोग लिखते है कि राजा अजातशत्रु के मंत्री वर्षकार ने पाटली ग्राम में एक दुर्ग बनवाया था, जिसे देखकर महात्मा बुद्ध ने कहा था कि यह कुछ दिनो मे एक प्रधान नगर हो जायगा। इधर वायुपुराण में लिखा है कि अजातशत्रु के पुत्र उदयाश्व ने यह नगर बसाया है——

स वै पुरवर राजा पृथिव्या कुसुमाह्वय ।

गगाया दक्षिणे कोणे चतुर्थाब्दे करिष्यति ।। वायुपुराण ।

अजातशत्रु और बुद्ध समकालीन थे । बुढ़ का निर्वाण ५५० ई० पू० मे मान ले तो सम्भव है कि पाटली-दुर्ग पचास वर्ष के बाद नगर-रूप में परिणत हो गया हो । अनुमान किया जाता है कि ५०० ई० पू० मे पाटलीपुत्र बसा था ।

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