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प्रथम अंक
 

गांधार छोड़ दो। मैं आम्भीक को शक्तिभर पतन से रोकूँगी, परन्तु उसके न मानने पर तुम्हारी आवश्यकता होगी। जाओ वीर!

सिंह॰—अच्छा राजकुमारी, तुम्हारे स्नेहानुरोध से मैं जाने के लिए बाध्य हो रहा हूँ। शीघ्र ही चला जाऊँगा देवि! किन्तु यदि किसी प्रकार सिन्धु की प्रखर धारा को यवन सेना न पार कर सकती....।

अलका—मैं चेष्टा करूँगी वीर, तुम्हारा नाम?

सिह॰—मालवगण के राष्ट्रपति का पुत्र सिंहरण।

अलका—अच्छा, फिर कभी।

[दोनों एक-दूसरे को देखते हुए प्रस्थान करते हैं।]

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