['साधु-साधु' की ध्वनि]
नन्द—इस अभिनेत्री को यहाँ बुलाओ।
[सुवासिनी नन्द के समीप आकर प्रणत होती है।]
नन्द—तुम्हारा अभिनय तो अभिनय नहीं हुआ?
नागरिक—अपितु वास्तविक घटना, जैसी देखने में आवे वैसी ही।
नन्द—तुम बडे़ कुशल हो। ठीक कहा।
सुवासिनी—तो मुझे दण्ड मिले। आज्ञा कीजिए देव!
नन्द—मेरे साथ एक पत्र।
सुवासिनी—परन्तु देव एक बड़ी भूल होगी।
नन्द—वह क्या?
सुवासिनी—आर्य्य राक्षस का अभिनय-पूर्ण गान नहीं हुआ है।
नन्द—राक्षस!
नागरिक—यहीं है, देव!
[राक्षस आकर प्रणाम करता है।]
नन्द—वसन्तोत्सव की रानी की आज्ञा से तुम्हें गाना होगा।
राक्षस—उसका मूल्य होगा एक पात्र कादम्ब
[सुवासिनी पात्र भर कर देती हैं।]
[सुवासिनी मान का मूक अभिनय करती हैं, राक्षस सुवासिनी के सम्मुख अभिनय सहित-गाता है—]
निकले मत बाहर दुर्वल आहे!
लगेगा तुझे हँसी का शीत
शरद नीरद माला के बीच
तड़प ले चपला-सी भयभीत
पड़ रहे पावन प्रेम-फुहार
जलन कुछ-कुछ है मीठी पीर
सम्हाले चल कितनी है दूरु
प्रलय तक व्याकुल हो न अधीर