पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/७९

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सिन्धु-तट—अलका और मालविका

मालविका—राजकुमारी! मैं देख आई, उद्‌भांड में सिन्धु पर सेतु बन रहा है। युवराज स्वयं उसका निरीक्षण करते हैं और मैंने उक्त सेतु का एक मानचित्र भी प्रस्तुत किया था। यह कुछ अधूरा-सा रह गया है, पर इसके देखने से कुछ आभास मिल जायगा।

अलका—सखी! बड़ा दुःख होता है, जब मैं यह स्मरण करती हूँ कि स्वयं महाराज का इसमें हाथ हैं। देखूँ तेरा मानचित्र!

[मालविका मानचित्र देती है, अलका उसे देखती है; एक यवन सैनिक का प्रवेश—वह मानचित्र अलका से लेना चाहता है]

अलका—दूर हो दुर्विनीत दस्यु!—(मानचित्र अपने कंचुक में छिपा लेती है।)

यवन—यह गुप्तचर है, मैं इसे पहचानता हूँ। परन्तु सुन्दरी! तुम कौन हो; जो इसकी सहायता कर रही हो, अच्छा हो कि मुझे मानचित्र मिल जाय, और मैं इसे सप्रमाण बन्दी बनाकर महाराज के सामने ले जाऊँ।

अलका—यह असम्भव है। पहले तुम्हें बताना होगा कि तुम यहाँ किस अधिकार से यह अत्याचार किया चाहते हो?

यवन—मैं? मैं देवपुत्र विजेता अलक्षेन्द्र का नियुक्त अनुचर हूँ और तक्षशिला की मित्रता का साक्षी हूँ। यह अधिकार मुझे गांधार-नरेश ने दिया है।

अलका—अह! यवन, गांधार-नरेश ने तुम्हें यह अधिकार कभी नहीं दिया होगा कि तुम आर्य-ललनाओं के साथ धृष्टता का व्यवहार करो।

यवन—करना ही पड़ेगा, मुझे मानचित्र लेना ही होगा।

अलका—कदापि नहीं।