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प्रथम अंक
 


अलका—नहीं महाराज! पहले न्याय कीजिये।

यवन—उद्भाण्ड पर बँधनेवाले पुल का मानचित्र इन्होंने एक स्त्री से बनवाया हैं, और जब मैं उसे माँगने लगा, तो एक युवक को देकर इन्होंने उसे हटा दिया। मैंने यह समाचार आप तक निवेदन किया और आज्ञा मिली कि वे लोग बन्दी किये जायँ; परन्तु वह युवक निकल गया।

राजा—क्यो बेटी! मानचित्र देखने की इच्छा हुई थी?—(सिल्यूकस से)—तो क्या चिन्ता है, जाने दो। मानचित्र तुम्हारा पुल बँधना रोक नहीं सकता।

अलका—नहीं महाराज! मानचित्र एक विशेष कार्य से बनवाया गया है—वह गांधार की लगी हुई कालिख छुड़ाने के लिए ......।

राजा—सो तो मैं जानता हूँ बेटी! तुम क्या कोई ना समझ हो।

[वेग से आम्भीक का प्रवेश]

आम्भीक—नहीं पिताजी, आपके राज्य में एक भयानक षड्यन्त्र चल रहा है और तक्षशिला का गुरुकुल उसका केन्द्र है। अलका उस रहस्यपूर्ण कुचक्र की कुंजी है।

राजा—क्यों अलका! यह बात सही है?

अलका—सत्य है। महाराज! जिस उन्नति की आशा में आम्भीक ने यह नीच कर्म किया है, उसका पहला फल यह है कि आज मैं वन्दिनी हूँ, सम्भव है कल आप होंगे! और परसो गांधार की जनता बेगार करेगी। उनका मुखिया होगा आपका वंश-उज्ज्वलकारी आम्भीक!

यवन—सन्धि के अनुसार देवपुत्र का साम्राज्य और गांधार मित्र-राज्य हैं, व्यर्थ की बात है।

आम्भीक—सिल्यूकस! तुम विश्राम करो। हम इसको समझकर तुमसे मिलते हैं।

[यवन का प्रस्थान, रक्षको का दूसरी ओर जाना]

राजा—परन्तु आम्भीक! राजकुमारी वन्दिनी बनाई जाय, वह भी

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