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पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/१७३

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दृश्य २ ]
चाँदी की डिबिया
 

रोपर क्या कहता था? जिस आदमी के घर में ऐसी वारदात हो गई हो, उसके होश उड़ा देने को इतनी बात काफ़ी है। हम जो कुछ कहते या करते हैं, वह हमारे मुँह से निकल ही पड़ता है। भूत-सा सिर पर सवार रहता है। मैं इन बातों का आदी नहीं हूँ।

[ वह खिड़की को खोल देता है मानो उसका दम घुट रहा हो। किसी लड़के के सिसकने की धीमी आवाज़ सुनाई देती है। ]

यह कैसी आवाज़ है?

[ वे सब कान लगा कर सुनते हैं। ]

मिसेज़ बार्थिविक

[ तीव्र स्वर में ]

मुझसे रोना नहीं सुना जाता। मैं मार्लो को भेजती हूँ कि इसे रोक दे। मेरे सारे रोएँ खड़े हो गए।

[ घंटी बजाती है ]

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